देश में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के तहत लाखों मजदूर अपना जीवन यापन करते है। लेकिन अब इस योजना की हालात बिगड़ती जा रहे है। इस योजना के अंतर्गत कार्यरत श्रमिको की दिवाली भी इस बार फीकी पड़ती दिखाई दे रही है। योजना के खाते में बस चंद रुपए बचे हैं। वहीं, शनिवार को ग्रामीण विकास मंत्रालय ने कहा कि सरकार कार्यक्रम के उचित कार्यान्वयन के लिए मजदूरी और सामग्री भुगतान के लिए धन जारी करने के लिए प्रतिबद्ध है। मंत्रालय ने कहा कि अतिरिक्त धन की आवश्यकता पर ही वित्त मंत्रालय से इसे हासिल करने का अनुरोध किया जाता है।
मनरेगा की कंगाली पर पीपुल्स ऐक्शन फार इंप्लाइमेंट गारंटी (पीएईजी) कार्यकारी समूह के सदस्य निखिल डे का कहना है कि कोरोना महामारी के चलते श्रमिकों पर भारी आर्थिक संकट मंडरा रहा है। पिछले वर्ष जब कोरोना महामारी की पहली लहर आई थी तो लाखों ग्रामीणों के लिए मनरेगा एकमात्र सहारा बना था। वित्तीय वर्ष 2020-21 में कुल 7.75 करोड़ परिवारों को इसके तहत काम मिला था। निखिल डे ने बताया कि “इस वर्ष के लिए आवंटित बजट का लगभग 90 प्रतिशत अब तक उपयोग किया जा चुका है, कार्यक्रम के पांच महीने अभी भी शेष हैं।”
बता दें कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में केंद्र ने देशव्यापी लॉकडाउन समाप्त होने का तर्क देते हुए योजना का बजट सिर्फ 73,000 करोड़ रुपये निर्धारित किया था। 29 अक्टूबर तक, देय भुगतान सहित कुल व्यय पहले ही 79,810 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था, जिससे योजना संकट में आ गई। वहीं, पिछले वित्तीय वर्ष में, केंद्र ने आवंटन को 61,500 करोड़ रुपये के प्रारंभिक आवंटन से संशोधित कर 1.11 लाख करोड़ रुपये कर दिया था।