
प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1982 में हुई कुसुमा देवी हत्या मामले में अवधेश कुमार और सह-आरोपी माता प्रसाद को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह मामला 43 साल पुराना है और निचली अदालत ने 1984 में दोनों आरोपियों को बरी कर दिया था। हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए दोषियों को दो सप्ताह के भीतर सरेंडर करने का आदेश दिया है।
मामले की पृष्ठभूमि यह है कि अवधेश कुमार अपने छोटे भाई की पत्नी से अवैध संबंध रखता था। जब उसकी पत्नी कुसुमा देवी ने इसका विरोध किया, तो 6 अगस्त 1982 को अवधेश और उसके साथियों ने भूत भगाने का बहाना बनाकर कुसुमा की गला घोंटकर हत्या कर दी। दो गवाहों ने यह बताया कि हत्या के तुरंत बाद आरोपियों ने शव को जलाकर सबूत मिटाने की कोशिश की।
जस्टिस राजीव गुप्ता और जस्टिस हरवीर सिंह की खंडपीठ ने इस मामले में न्याय दिलाया। अदालत ने अपने 25 सितंबर के आदेश में इसे अंधविश्वास का गंभीर उदाहरण बताया। अदालत ने कहा कि यह घटना समाज को झकझोरती है और ऐसी बुराइयों की निंदा करना आवश्यक है।
अदालत ने यह भी माना कि गवाहों के बयान तथ्यों से मेल खाते हैं। इसके अलावा, हत्या के बाद आरोपियों ने पुलिस या परिजनों को कोई सूचना नहीं दी, जिससे स्पष्ट होता है कि उन्होंने अपराध छुपाने की कोशिश की थी। अदालत का यह निर्णय 43 साल बाद भी न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह मामला समाज के लिए चेतावनी भी है कि अंधविश्वास और व्यक्तिगत स्वार्थ में शामिल अपराध कितने गंभीर परिणाम ला सकते हैं। हाईकोर्ट का यह फैसला न्याय की प्रक्रिया और सच्चाई की जीत के रूप में देखा जा रहा है।









