Delhi: उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड अधिनियम 2022 पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होगी। इस मामले में देश के प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ निर्णय सुनाएगी।
2022 में मदरसा बोर्ड अधिनियम हुआ था लागू
दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार ने 2022 में मदरसा बोर्ड अधिनियम को लागू किया था, जिसके तहत राज्य के मदरसों को सरकारी मान्यता प्राप्त करने के लिए एक बोर्ड के अधीन आना आवश्यक किया गया था। इस अधिनियम का उद्देश्य मदरसों में शिक्षा का स्तर सुधारने, अध्यापक-शिक्षिकाओं की भर्ती में पारदर्शिता लाने और छात्रों को औपचारिक शिक्षा प्रदान करना था।
धार्मिक स्वतंत्रता और मदरसा शिक्षण पर हस्तक्षेप
लेकिन, इस कानून का विरोध करने वाले मदरसा संगठनों का कहना है कि यह अधिनियम धार्मिक स्वतंत्रता और मदरसा शिक्षण के पारंपरिक ढांचे में हस्तक्षेप कर रहा है। उनका कहना है कि यह एकतरफा आदेश है और इससे मदरसों के अस्तित्व और उनका कार्यप्रणाली प्रभावित हो सकती है। विरोधियों का यह भी आरोप है कि यह अधिनियम मदरसों को सरकारी नियंत्रण में लाकर उन्हें धर्मनिरपेक्ष शिक्षा व्यवस्था के तहत लाने की कोशिश कर रहा है, जो उनके धार्मिक व सांस्कृतिक पहलुओं के खिलाफ है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि मदरसों की स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों का सम्मान करते हुए सरकार के प्रयासों को लागू करने के लिए संतुलन बनाना जरूरी होगा। फैसले के बाद यह स्पष्ट होगा कि यूपी मदरसा बोर्ड अधिनियम को किस हद तक संवैधानिक रूप से चुनौती दी जा सकती है और इसके लागू होने की वैधता पर क्या असर पड़ेगा। इस मामले में आज की सुनवाई के बाद संभावित निर्णय की प्रतीक्षा की जा रही है, जो मदरसों के भविष्य और शिक्षा व्यवस्था पर प्रभाव डाल सकता है।
हाई कोर्ट ने एक्ट को ही रद्द कर दिया था
दरअसल, इस मामले में याचिकाकर्ता ने यह दलील दी थी कि जैन, सिख, ईसाई जैसे धर्मों से संबंधित सभी शैक्षिक संस्थानों को शिक्षा मंत्रालय के अधीन संचालित किया जाता है, जबकि मदरसों को अल्पसंख्यक विभाग के तहत रखा जाता है। इससे मदरसा छात्रों को शिक्षा के क्षेत्र में विशेषज्ञता और नीति लाभ से वंचित रहना पड़ता है। इस पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट को रद्द कर दिया था। हालांकि, आज देश की सर्वोच्च अदालत ने इस फैसले पर रोक लगा दी है।
क्या मदरसा बोर्ड का उद्देश्य केवल धार्मिक शिक्षा प्रदान करना है?
2019 में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मदरसा बोर्ड के कामकाज और संरचना से संबंधित कुछ सवालों को बड़ी पीठ के पास भेजा था। इन सवालों में यह पूछा गया था कि क्या मदरसा बोर्ड का उद्देश्य केवल धार्मिक शिक्षा प्रदान करना है? और, क्या भारतीय धर्मनिरपेक्ष संविधान के तहत किसी विशेष धर्म से संबंधित लोगों को मदरसा बोर्ड में नियुक्त या नामांकित किया जा सकता है? इन मुद्दों पर उच्चतम न्यायालय ने अब विचार करने का निर्णय लिया है।
यूपी में कितने मदरसें?
बता दें कि उत्तर प्रदेश में लगभग 26,000 मदरसे संचालित हो रहे हैं। इनमें से 12,800 मदरसों ने एक बार रजिस्ट्रेशन कराने के बाद कभी उसका नवीनीकरण नहीं कराया। 8,500 मदरसे ऐसे हैं, जिन्होंने रजिस्ट्रेशन ही नहीं कराया। वहीं, 4,600 मदरसे रजिस्टर्ड हैं और अपनी खर्चों को खुद ही वहन करते हैं। इसके अलावा, 598 मदरसे ऐसे हैं, जो पूरी तरह से सरकारी सहायता से चल रहे हैं, यानी इन मदरसों को सरकार की तरफ से पूरा फंड मुहैया कराया जाता है। कुल मिलाकर, उत्तर प्रदेश में 26,000 मदरसे हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ 598 ही सरकारी मदरसे हैं।