भारत में श्रम-प्रधान क्षेत्रों की तुलना में पूंजी-प्रधान क्षेत्रों में रोजगार में अधिक वृद्धि देखी गई है, खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स, रसायन और मशीनरी जैसे उप-क्षेत्रों में। गोल्डमैन की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दस वर्षों में इन क्षेत्रों में रोजगार और निर्यात दोनों में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी हुई है। इसका कारण है कि सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और फार्मास्यूटिकल्स जैसे उत्पादों के असेंबली पर ध्यान केंद्रित किया है, जिससे विकसित बाजारों में निर्यात में दोहरे अंकों की वृद्धि हुई है। इसके अलावा, भारत ने उच्च-मूल्य वाले उत्पादों को निर्यात करने में भी प्रगति की है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पूंजी-प्रधान उद्योगों में श्रम-प्रधान क्षेत्रों की तुलना में उच्च रोजगार वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए, रासायनिक उत्पादों और मशीनरी जैसे क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि देखी गई, जबकि कपड़ा, फुटवियर और खाद्य पेय जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में यह वृद्धि कम रही।
भारत का विनिर्माण क्षेत्र अब एक महत्वपूर्ण परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, जो सरकारी सुधारों से प्रेरित है। इसका मुख्य केंद्र उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाएं हैं, जो घरेलू उत्पादन बढ़ाने, तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देने और निवेश आकर्षित करने के उद्देश्य से शुरू की गई हैं। 2020 से लागू इन योजनाओं के तहत 1.97 लाख करोड़ रुपये का प्रोत्साहन खर्च किया गया है और यह 14 महत्वपूर्ण क्षेत्रों को कवर करती हैं। इनमें इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स, ड्रोन, और विशेष स्टील जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य न केवल उत्पादन क्षमता बढ़ाना और रोजगार के अवसर पैदा करना है, बल्कि निर्यात को बढ़ावा देना और आयात पर निर्भरता कम करना भी है। जून 2024 तक, इन योजनाओं ने 1.32 लाख करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित किया और विनिर्माण उत्पादन में 10.9 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि की है। इसके साथ ही, इन योजनाओं ने 8.5 लाख नई नौकरियों का सृजन किया है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान कर रहे हैं।