
25 जून 1975—भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे काला दिन। इस दिन देश को आपातकाल के अंधकार में झोंक दिया गया। संविधानिक अधिकारों को कुचला गया, लाखों नागरिकों की स्वतंत्रता छीन ली गई, और विपक्षी नेताओं को जेलों में ठूंस दिया गया। कई ऐसे भी थे जो फिर कभी आज़ादी की हवा नहीं देख पाए।
आपातकाल: एक पूर्व नियोजित साज़िश
आमतौर पर यह धारणा है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द किए जाने के बाद वह घबरा गईं और आपातकाल लगा दिया। लेकिन सच्चाई इससे कहीं अधिक खतरनाक और योजनाबद्ध थी।
पत्रकार कूमी कपूर ने अपनी किताब The Emergency: A Personal History में जनवरी 1975 के एक पत्र का ज़िक्र किया है, जिसमें पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा गांधी को संभावित गिरफ्तारियों की सूची भेजी थी — यह आपातकाल के लिए प्रारंभिक तैयारी थी।
11 अगस्त को कांग्रेस के मुखपत्र नेशनल हेराल्ड ने लिखा कि अब समय आ गया है कि भारत एक “एक-दलीय लोकतंत्र” में तब्दील हो।
तानाशाही की दिशा में संवैधानिक बदलाव की तैयारी
इतिहासकार श्रीनाथ राघवन के अनुसार, इंदिरा गांधी के करीबियों ने “सीमित तानाशाही” वाला राष्ट्रपति प्रणाली लागू करने की वकालत की। सितंबर 1975 में इंदिरा गांधी को बी.के. नेहरू ने पत्र लिखा, जिसमें संसद के बजाय राष्ट्रपति को पूर्ण अधिकार देने की बात कही गई थी।
इसी दिशा में, कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. बरुआ ने 26 फरवरी 1976 को एक समिति गठित की — जिसकी अध्यक्षता स्वर्ण सिंह कर रहे थे — ताकि संविधान में बदलाव के प्रस्ताव तैयार किए जा सकें।
इस समिति की रिपोर्ट बनी 42वां संविधान संशोधन — जिसे आज मिनी संविधान कहा जाता है। इसके माध्यम से:
- संसद के बनाए कानूनों को न्यायिक समीक्षा से लगभग छूट दी गई
- उच्च न्यायालयों के रिट अधिकार को कमजोर किया गया
- अनुच्छेद 32, 131 और 226 में संशोधन कर लोगों के मौलिक अधिकारों को कुंद किया गया
- राज्यों की स्वायत्तता घटाई गई और केंद्र को सर्वशक्तिमान बना दिया गया
न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला
बी. आर. अंबेडकर ने कहा था कि “अनुच्छेद 32” संविधान की आत्मा है। लेकिन आपातकाल में उसी आत्मा को घायल किया गया। न्यायपालिका को एक “निष्ठावान” संस्था बनाने का प्रयास किया गया, जो केवल सत्ता की आज्ञा माने।
जस्टिस पी. बी. गजेन्द्रगडकर ने चेताया था कि संविधान संशोधन किसी पार्टी समिति द्वारा नहीं बल्कि विशेषज्ञों की निष्पक्ष समिति द्वारा होना चाहिए — लेकिन उनकी बातों को अनसुना किया गया।
आज भी वैसी ही सोच?
आज कांग्रेस अपने नेताओं को संविधान की प्रति हाथ में देकर सड़कों पर भेज रही है — मानो वह लोकतंत्र की सबसे बड़ी रक्षक हो। लेकिन 25 जून 1975 हमें याद दिलाता है कि कांग्रेस ही उस लोकतंत्र की सबसे बड़ी गुनहगार रही है।
मोदी युग में संविधान का सम्मान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी और भारतवासी मिलकर संविधान की रक्षा कर रहे हैं। जहां कांग्रेस ने संविधान को हथियार बना कर सत्ता कायम रखने की कोशिश की, वहीं आज की सरकार संविधान को लोकतंत्र की आत्मा मानती है — और उसी मार्ग पर चल रही है।
सावधानी ही सुरक्षा है
आपातकाल का इतिहास केवल एक बीता हुआ अध्याय नहीं है, यह सावधान करने वाली चेतावनी है। यह याद दिलाता है कि सत्ता जब असंयमित होती है, तो संस्थाएं कैसे कुचल दी जाती हैं।









