देश की शीर्ष अदालत ने देश की सभी कोर्ट को हिदायत दी की अगर कोई व्यक्ति जमानत याचिका प्रेषित कर रहा है और उस पर आरोप इस स्तिथि में नहीं है कि उसे जमानत देने से पूर्व कोर्ट को सोचना न पड़े तो यह सुनिश्चित करना चाहिए की अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकारों को ध्यान में रखते हुए उसे जमानत दे देनी चाहिए और अगर उसे जमानत नहीं दी जा रही तो इसका कारण और परिस्थितियों का उल्लेख किया जाना जरूरी है।
दरअसल दिल्ली हाई कोर्ट ने धन शोधन के एक मामले में आरोपी परविंदर खुराना को जमानत देने से इन्कार कर दिया था जिसके बाद खुराना ने शीर्ष कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिस पर सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि जमानत देना या न देना कोर्ट के अधिकारों में शामिल है लेकिन यह सुनिश्चित किया जाना बहुत जरूरी है की क्या जमानत न देने की परिस्थितियाँ गंभीर है? शीर्ष कोर्ट ने कहा की यांत्रिक तरीके और बिना कोई कारण बताये जमानत याचिका पर रोक लगाने से कोर्ट को बचना चाहिए।