
उत्तर प्रदेश के हालिया लोकसभा चुनाव में PDA (पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक) कार्ड से परचम लहराने वाले अखिलेश यादव ने बीत रविवार को बड़ा फैसला लेते हुए सबको चौंका कर रख दिया। उन्होंने विधानसभा में पहली बार किसी अगड़े को कमान सौंपा है। दरअसल, उन्होंने इस बार माता प्रसाद पांडेय को विधानसभा का नेता प्रतिपक्ष बनाया है।
मनोज पांडेय की जगह कमाल अख्तर बनें मुख्य सचेतक
हालांकि, इससे पहले विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की ये कमान अखिलेश यादव के पास थी। मगर फिर कन्नौज से सांसद चुने जाने के बाद उन्होंने करहल से सदस्यता और विधानसभा से नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी खाली कर दी। इसके बाद से ही इस पद के लिए नए चेहरे को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे। नेता प्रतिपक्ष के लिए दलित चेहरे के तौर पर इंद्रजीत सरोज का नाम सबसे आगे था। लेकिन, अखिलेश ने सात बार के विधायक माता प्रसाद पांडेय पर अपना भरोसा जताया। इसी के साथ राज्यसभा चुनाव में पाला बदलने वाले मनोज पांडेय की जगह कमाल अख्तर को मुख्य सचेतक बनाया गया है, जबकि आर.के. वर्मा को उपसचेतक की जिम्मेदारी दी गई है।
7 बार में 4 बार यादव परिवार के पास रही ‘गद्दी’
अब अगर इतिहास देखा जाए तो वर्ष 1993 में स्थापना के बाद से ही विधानसभा में सात बार सपा के पास नेता प्रतिपक्ष का ओहदा रहा है। जिसमें दो बार मुलायम सिंह यादव, एक-एक बार धनीराम वर्मा, आजम खान, शिवपाल सिंह यादव, रामगोविंद चौधरी और अखिलेश यादव के पास कमान रही। यानी चार बार सैफई परिवार ने नेता प्रतिपक्ष के पद पर खुद को आसीन रखा। वहीं, अगर जातीय लहजे से देखें तो सात बार में पांच बार यादव, एक बार मुस्लिम और एक बार कुर्मी चेहरे को एसपी ने नुमाइंदगी दी थी। जिसके बाद अब पार्टी के इतिहास में पहली बार किसी अगड़े को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का ओहदा दिया गया है।
माता प्रसाद हो सकते हैं लाभदायक
सियासी जानकारों का मानना है कि पांडेय दो बार विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं। इसलिए, वह संसदीय अनुभवों में सबसे भारी है। साथ ही पार्टी को विधानसभा में बागी विधायकों की सदस्यता खत्म कराने सहित कई और कानूनी लड़ाई भी लड़नी है, ऐसे में इटवा से विधायक माता प्रसाद का अनुभव अखिलेश के बहुत काम आ सकता है।









