
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जे.बी पार्दीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सोमवार को अहम फैसला सुनाया। हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड के वरिष्ठ अधिकारियों पर आत्महत्या के लिए उकसाने पर लगे आरोप को खारिज कर दिया है। इसी के साथ उनपर लगे आरोप के खिलाफ यानी आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले को सीधे तौर पर खारिज करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने अन्य अदालतों के साथ-साथ पुलिस को भी आत्महत्या के लिए उकसाने के सिद्धांतों के गलत इस्तेमाल करने को लेकर चेताया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि समय के साथ, अदालतों का चलन ये रहा है कि इस तरह के इरादे को पूरी तरह से सुनवाई के बाद ही समझा या समझाया जा सकता है। समस्या ये है कि अदालतें केवल आत्महत्या के तथ्य को देखती हैं और इससे ज़्यादा कुछ नहीं। हमारा मानना है कि अदालतों की ओर से ऐसी समझ गलत है। ये सब अपराध और आरोप की प्रकृति पर निर्भर करता है।” “अदालतों को पता होना चाहिए कि रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों पर आत्महत्या के लिए उकसाने को नियंत्रित करने वाले कानून के सही सिद्धांतों को कैसे लागू किया जाए। आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में कानून के सही सिद्धांतों को समझने और लागू करने में अदालतों की ओर से असमर्थता ही अनावश्यक अभियोजन की ओर ले जाती है।”









