काशी में रामलीला के दौरान टूट जाती है मजहबी दीवार, प्रभु श्री राम की झलक के लिए आतुर होता है मुस्लिम परिवार

उत्तर प्रदेश के कई जिलों में धार्मिक जन सौहार्द बिगाड़ने की तस्वीर इन दिनों देखने को मिला।पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां एक तरफ धार्मिक बयानबाजी को लेकर हिंसा की तस्वीर सामने आ रही है, तो वही धर्म की नगरी काशी में इसके इतर धार्मिक और सामाजिक सौहार्द की तस्वीर काफी चर्चा में है।

वाराणसी। उत्तर प्रदेश के कई जिलों में धार्मिक जन सौहार्द बिगाड़ने की तस्वीर इन दिनों देखने को मिला।पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां एक तरफ धार्मिक बयानबाजी को लेकर हिंसा की तस्वीर सामने आ रही है, तो वही धर्म की नगरी काशी में इसके इतर धार्मिक और सामाजिक सौहार्द की तस्वीर काफी चर्चा में है। मौका नवरात्र ने होने वाले रामलीला का है। काशी के फुलवरिया में होने वाली रामलीला का मंचन गंगा जमुनी तहजीब की मिशाल पेश कर रही है। रामलीला को देखने के लिए हिंदू और मुस्लिम समाज के लोग बड़ी संख्या में पहुंचते है, तो वही मुस्लिम बुजुर्ग द्वारा प्रभु श्री राम की आरती के बाद रामलीला का मंचन शुरू होता है।

गांव के हिंदू और मुस्लिम युवक मिलकर करते है रामलीला का मंचन

वाराणसी के फुलवरिया में होने वाली रामलीला बेहद ही खास होती है। इस रामलीला में हिंदू और मुस्लिम युवक साथ मिलाकर रामलीला का मंचन करते है। रामलीला में मंचन के अलावा यहां होने वाले रामचरित मानस का पाठ भी गांव के लोगो के द्वारा किया जाता है।रामलीला में किसी भी बाहरी कलाकार या मंच पर पाठ करने के लिए नहीं बुलाया जाता है। इस रामलीला को देखने के लिए प्रतिदिन हजारों की संख्या में महिलाओं के साथ पुरुष पहुंचते है। फुलवरिया में होने वाली इस रामलीला को नव चेतना कला और विकास समिति के डरा आयोजित करवाई जाती है। जिसकी शुरुआत गांव के हिंदू – मुस्लिम लोगो ने मिलकर वर्ष 1992 में किया था। समय चक्र के साथ यह रामलीला आधुनिक हुई लेकिन आज भी हिंदू – मुस्लिम समाज के लोग एकता के द्वारा शुरू हुए इस रामलीला की परंपरा को पिछले 32 वर्षो से निभाते चले आ रहे है।

निजामुद्दीन उतारते है प्रभु श्री राम की आरती, रामलीला में निभा चुके है हनुमान का किरदार

फुलवरिया के रहने वाले निजामुद्दीन 13 दिनो तक चलने वाले रामलीला में प्रतिदिन प्रभु श्री राम के साथ अन्य पात्रों की आरती कर मंचन की शुरुआत करवाते है। 60 वर्ष से अधिक उम्र के निजामुद्दीन रामलीला में कभी हनुमान का किरदार निभाते थे। निजामुद्दीन का कहना है, कि पिछले 32 सालों से वह रामलीला में शामिल हो रहे है। नवरात्र में यदि वह रामलीला में ना शामिल हुए तो उनका जीवन अधूरा है। उनका कहना है, कि रामलीला धार्मिक एकता और सौहार्द का प्रतीक है। प्रभु श्री राम हम सभी के इष्ट देवता है, ऐसे में गांव के सभी हिंदू और मुस्लिम परिवार इस पर्व को बेहद ही सौहार्दपूर्ण तरीके से मनाता है। रामलिला समिति के संस्थापक डॉक्टर शिव कुमार गुप्ता ने बताया कि इस रामलीला में सभी कलाकार गांव के हिंदू और मुस्लिम परिवार के युवक है। सभी मिलजुलकर रामलीला के मंचन को संपन्न करवाते है और इस मंचन को देखने के लिए गांव में वाराणसी शहर से भी लोग खींचे चले आते है।

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