
Digital Story: मकर संक्रांति हिन्दू कैलेंडर का एक प्रमुख और धार्मिक त्योहार है, जो सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के दिन मनाया जाता है। इस दिन को भारत में खासतौर पर विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों के रूप में मनाया जाता है। पर सवाल यह है कि यह त्योहार हर साल 14 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है और कब-कब तारीख बदलती है?
मकर संक्रांति और सूर्य का खगोलीय महत्व
मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का दिन होता है। भारतीय खगोलशास्त्र के अनुसार, सूर्य जब मकर राशि (जो कर्क और मीन के बीच स्थित है) में प्रवेश करता है, तो उसे मकर संक्रांति कहा जाता है। यह समय सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश का प्रतीक है, जो भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण है।
सूर्य की गति..
सूर्य का हर दिन 1 डिग्री के करीब यात्रा होती है, और यह पूरे 12 राशियों में 360 दिन में चक्कर लगाता है। जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तो वह एक नए ज्योतिषीय चक्र की शुरुआत करता है। यह गणना सौर कैलेंडर (Solar Calendar) के आधार पर होती है, जो हर दिन सूर्य की स्थिति के हिसाब से तय होती है। इस स्थिति को ‘संक्रांति’ कहा जाता है, जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है।
क्यों 14 तारीख को पड़ती है मकर संक्रांति..
मकर संक्रांति हमेशा 14 जनवरी के आसपास होती है, क्योंकि यह सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के समय से जुड़ा है। चूंकि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश हर साल एक ही तारीख पर नहीं होता, इस कारण मकर संक्रांति का पर्व 13 जनवरी से 15 जनवरी तक किसी भी दिन हो सकता है, लेकिन अधिकतर यह 14 जनवरी को ही पड़ता है। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश एक निश्चित समय पर होता है, लेकिन यह समय हर साल थोड़ा अलग होता है। यह परिवर्तन सूर्य के खगोलीय गति के कारण होता है, क्योंकि हर साल सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का समय एक दिन या कुछ घंटों में बदलाव करता है।
कब-कब बदलती है मकर संक्रांति की तारीख?
मकर संक्रांति की तारीख हर साल थोड़ी सी बदल सकती है। इसकी मुख्य वजह सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का समय और भारतीय पंचांग की गणना प्रणाली है। भारतीय पंचांग में 12 महीनों को चंद्र कैलेंडर और सौर कैलेंडर के आधार पर तय किया जाता है। इस कारण कभी-कभी मकर संक्रांति 13 जनवरी या 15 जनवरी को भी पड़ सकती है। इसके पीछे कुछ प्रमुख कारण हैं:
सूर्य का समय परिवर्तन..
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश हर साल एक दिन या कुछ घंटों में बदलाव करता है। जैसे यदि सूर्य 14 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश करता है, तो अगले साल यह 15 जनवरी को हो सकता है। इस कारण मकर संक्रांति की तारीख में बदलाव हो सकता है।
पंचांग की गणना..
भारतीय पंचांग में एक साल में 365 दिन होते हैं, लेकिन चंद्र कैलेंडर के हिसाब से कुछ महीनों का समय बढ़ जाता है या घट जाता है। जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तो पंचांग के हिसाब से यह दिन 13 जनवरी, 14 जनवरी या 15 जनवरी में से किसी दिन हो सकता है।
लिप वर्ष (Leap Year)…
लिप वर्ष (Leap Year) के दौरान फरवरी का महीना 29 दिन का होता है, जिससे पंचांग की गणना पर असर पड़ता है। लिप वर्ष के कारण मकर संक्रांति की तारीख भी बदल सकती है। उदाहरण के लिए, अगर सूर्य 14 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश करता है, तो अगले लिप वर्ष में यह तारीख एक दिन आगे बढ़कर 15 जनवरी हो सकती है।
खगोलशास्त्र का असर..
सूर्य की गति में भी हर साल थोड़ी सी शिथिलता (slight variation) हो सकती है, जिससे मकर संक्रांति का दिन एक दिन पहले या बाद में हो सकता है। यह अंतर बहुत कम होता है, लेकिन इसकी वजह से तारीख में हल्का सा बदलाव आ सकता है।
मकर संक्रांति और भारतीय संस्कृति मकर संक्रांति का पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है, लेकिन यह पूरे भारत में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है:
पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है।
- गुजरात में इसे उत्तरायण के नाम से जाना जाता है, और वहां पतंगबाजी का आयोजन होता है।
- महाराष्ट्र में इसे संक्रांति कहा जाता है, और लोग तिल और गुड़ से बनी मिठाइयाँ बांटते हैं।
- उत्तर भारत में इस दिन को माघ मेला और स्नान का महत्व होता है, और लोग गंगा नदी में स्नान करने के लिए जाते हैं।
बता दें कि, मकर संक्रांति एक खगोलीय घटना है जो सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से जुड़ी है। इसका दिन हर साल थोड़ा बदल सकता है, क्योंकि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का समय हर साल थोड़ा अलग होता है। हालांकि, यह अधिकतर 14 जनवरी को पड़ता है, लेकिन कभी-कभी यह 13 या 15 जनवरी को भी हो सकता है। इस दिन को विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, और यह भारतीय संस्कृति में एक विशेष महत्व रखता है।









