
भारत में वैज्ञानिकों को लंबे समय से एक बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता था – जरूरी उपकरण खरीदने में अड़चन। लेकिन अब सरकार द्वारा जनरल फाइनेंशियल रूल्स (GFR) में किए गए संशोधनों से शोध जगत को बड़ी राहत मिल सकती है।
IIT कानपुर के प्रोफेसर अमिताभ बंद्योपाध्याय की लैब में तीन मशीनें इस समस्या की पूरी कहानी बयां करती हैं। इनमें से एक है 16 साल पुरानी जर्मन माइक्रोटोम मशीन, जो अब भी उतनी ही सटीकता से काम कर रही है जितनी कभी करती थी। यह मशीन दर्शाती है कि वैज्ञानिकों को कैसे सालों तक पुराने उपकरणों पर निर्भर रहना पड़ा क्योंकि नए रिसर्च टूल्स की खरीद में GFR की सख्त प्रक्रियाएं बाधा बनती थीं।
GFR यानी जनरल फाइनेंशियल रूल्स के तहत अब तक वैज्ञानिकों को किसी भी उपकरण की खरीद के लिए जटिल और समय खपाने वाली प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता था। इससे रिसर्च धीमी हो जाती थी और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने का खतरा बना रहता था।
अब सरकार ने इन नियमों में संशोधन कर वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों को कई मामलों में निर्णय लेने की स्वायत्तता दी है। उपकरणों की खरीद की प्रक्रिया में लचीलापन बढ़ा है और समय की बचत भी होगी। इसका सीधा असर शोध की गुणवत्ता, गति और नवाचार पर पड़ेगा। यह बदलाव वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है। यह न केवल शोध को बढ़ावा देगा बल्कि भारत को एक शोध-उन्मुख राष्ट्र बनाने की दिशा में मजबूत कदम भी है।









