
नई दिल्ली। इंडियन स्पेस कांग्रेस 2025 दिल्ली में पूरी तरह से सजी है, जहाँ ब्यूरोक्रेट्स, निर्णय निर्माता, नीति निर्माता, और स्पेस सेक्टर के निजी खिलाड़ी इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि कैसे भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को और मजबूत किया जाए और इसे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया जाए। इस बार एक सामान्य थीम है, ‘आत्मनिर्भरता’, जो सभी चर्चाओं में प्रमुखता से उभर कर सामने आ रही है।
आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ता अंतरिक्ष क्षेत्र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘आत्मनिर्भर भारत’ का दृष्टिकोण अब भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र की दिशा को गहरे प्रभावित कर रहा है। यह दृष्टिकोण भारत को राष्ट्रीय शक्ति और रणनीतिक स्वायत्तता के महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में उभार रहा है। यह परिवर्तन कई महत्वपूर्ण पहलों में देखा जा सकता है, जैसे प्राइवेट सैटेलाइट कन्स्टेलेशन का सफल लॉन्च और दीर्घकालिक अंतरिक्ष अन्वेषण लक्ष्य।
इस साल जनवरी में, प्रधानमंत्री मोदी ने Pixxel के ‘Firefly’ को सराहा, जो भारत का पहला प्राइवेट सैटेलाइट कन्स्टेलेशन है, और इसे भारत के अंतरिक्ष नवाचार में बढ़ती ताकत का प्रतीक बताया। साथ ही, ISRO ने अपनी स्वदेशी EOS-08 सैटेलाइट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया, जो समुद्र की सतह की गति, मृदा आर्द्रता, और बाढ़ का पता लगाने के लिए महत्वपूर्ण रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग करता है। यह पहल भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को और बढ़ावा देती है।
स्पेस सेक्टर सुधार और निजी क्षेत्र की भूमिका
भारत सरकार के 2020 के स्पेस सेक्टर सुधार और इंडियन स्पेस पॉलिसी 2023 ने निजी क्षेत्र को महत्वपूर्ण रूप से प्रोत्साहित किया है। इन पहलुओं के तहत, सरकार ने गैर-सरकारी संस्थाओं के लिए दरवाजे खोले हैं और FDI की सीमा को बढ़ाकर 100% कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप, निजी कंपनियाँ अब भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं, जिससे देश की रणनीतिक स्वायत्तता को बढ़ावा मिल रहा है।
स्पेस विज़न 2047: भारत का दीर्घकालिक लक्ष्य
स्पेस विज़न 2047 के तहत भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। इनमें 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना, 2040 तक चाँद पर मानव मिशन, और 2032 तक नई पीढ़ी के सैटेलाइट लॉन्च वाहन का विकास शामिल है। इन लक्ष्यों के माध्यम से भारत अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम में स्वदेशी क्षमताओं को और मजबूत करने की दिशा में काम कर रहा है।
भारत और मध्य-पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC)
भारत की स्वदेशी अंतरिक्ष क्षमताएँ भारत-मध्य-पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) जैसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय बुनियादी ढाँचे पहलों में सीधे तौर पर योगदान करती हैं। IMEC को सुरक्षित संचालन के लिए मजबूत सुरक्षा और संचालन समर्थन की आवश्यकता है, जो अंतरिक्ष तकनीकों से प्राप्त किया जा सकता है।
भारत के NAVIC (नेविगेशन विद इंडिजेनस कॉम्पास) का EU के Galileo और US के GPS के साथ इंटरऑपरेबिलिटी, इस गलियारे के लिए एक सशक्त पोसिशनिंग, नेविगेशन, और टाइमिंग समर्थन प्रदान करती है। इसके अलावा, पृथ्वी अवलोकन और उपग्रह संचार जैसे अंतरिक्ष तकनीकी अनुप्रयोगों के उपयोग से IMEC की आपूर्ति श्रृंखलाओं की सुरक्षा और समृद्धि बढ़ाई जाएगी।
वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में भारत की भूमिका
भारत का बढ़ता स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता उसे वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में भी एक प्रमुख स्थान दिला रहा है। Bellatrix Aerospace, Pixxel, Dhruva Space, और Agnikul Cosmos जैसे भारतीय स्पेस स्टार्ट-अप्स अब वैश्विक विस्तार की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं। भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र 2023 में $8.4 बिलियन से बढ़कर 2033 तक $44 बिलियन तक पहुँचने का अनुमान है। भारत का लक्ष्य 2030 तक वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का 10% हिस्सा प्राप्त करना है।
भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र न केवल आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर भी एक प्रमुख भूमिका निभाने की ओर अग्रसर है। भारत स्पेस कांग्रेस 2025 जैसे मंच इसे और मजबूत करने में सहायक साबित हो रहे हैं। जैसे-जैसे भारत अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ा रहा है, यह न केवल राष्ट्रीय हितों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि वैश्विक समृद्धि और सुरक्षा के लिए भी योगदान दे रहा है।









