
मानवजनित जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अब पूरी दुनिया में महसूस किया जा रहा है। IPCC की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट स्पष्ट रूप से कहती है कि 2011-2020 के दशक में पृथ्वी का तापमान औद्योगिक युग से पहले (1850-1900) की तुलना में 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है।
लेकिन इसके बावजूद, विकसित देश वैश्विक कार्बन बजट का असमान रूप से बड़ा हिस्सा उपयोग करते रहे हैं और जलवायु कार्रवाई के लिए विकासशील देशों को संसाधन और तकनीक देने में अनिच्छुक दिखाई देते हैं।
भारतीय दर्शन: जलवायु न्याय की आत्मा
वेदों की अमर वाणी “सर्वे भवन्तु सुखिनः” (सभी सुखी हों) आज भी भारत की जलवायु नेतृत्व की भावना को दिशा दे रही है। जबकि वैश्विक समुदाय अक्सर केवल आपदा और संकट की बात करता है — बढ़ता तापमान, अनियमित मौसम और प्राकृतिक आपदाएं — भारत ने “असुविधाजनक सच्चाई” की जगह “सुविधाजनक कार्रवाई” को अपनाया।
भारत: जलवायु का ज़िम्मेदार नागरिक
पिछले 11 वर्षों में भारत ने अपने आचरण और नीति दोनों से यह साबित किया है कि वह जलवायु संकट का समाधान देने वाला देश है, न कि समस्या का हिस्सा।
- 2015 पेरिस समझौते में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अग्रणी भूमिका ने वैश्विक मंच पर भारत को जलवायु नेतृत्व की अग्रिम पंक्ति में ला खड़ा किया।
- भारत ने COP21 में अपने प्रथम राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान (NDC) को केवल औपचारिक दायित्व नहीं, बल्कि वैश्विक जिम्मेदारी के रूप में प्रस्तुत किया।
- उसी वर्ष शुरू किया गया इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA) आज 120 से अधिक देशों के साथ सौर ऊर्जा सहयोग का वैश्विक मंच बन चुका है।
नवीकरणीय ऊर्जा में भारत की छलांग
- 2014 में RE की स्थापित क्षमता: 76 GW
- मार्च 2025 तक पहुंची: 220 GW
- 2030 तक लक्ष्य: 500 GW
भारत आज नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में दुनिया में:
- चौथे स्थान पर (कुल RE में)
- चौथे स्थान पर (पवन ऊर्जा में)
- तीसरे स्थान पर (सौर ऊर्जा में)
विश्वगुरु भारत का हरित दृष्टिकोण
जहां एक ओर विकसित राष्ट्र जलवायु कार्रवाई में हिचकते हैं, वहीं भारत अपने सांस्कृतिक मूल्यों और वैज्ञानिक क्षमता के साथ हरित विकास का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।
‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ सिर्फ एक प्रार्थना नहीं, आज भारत की जलवायु नीति की बुनियाद है — जो विकास और पर्यावरण के संतुलन का रास्ता दिखाती है।









