
हरदीप पुरी की टिप्पणी पर बेवजह की नाराजगी
पूर्व राजनयिक विवेक काटजू ने हरदीप सिंह पुरी के ‘थिएटर ऑफ द एब्सर्ड’ वाले बयान को गलत संदर्भ में लेकर विवाद खड़ा करने की कोशिश की है। जबकि पुरी का बयान स्पष्ट रूप से 26/11 के बाद की भारत सरकार की निष्क्रियता की आलोचना के रूप में था।
UPA का ‘रणनीतिक संयम’ बना राष्ट्रीय अपमान का कारण
2005 से 2008 के बीच भारत में सात बड़े आतंकी हमले हुए, जिनमें 2,000 से अधिक लोग मारे गए। फिर भी कोई निर्णायक सैन्य या कूटनीतिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई। 26/11 के बाद भी केवल “थोड़ा सा हॉट पर्सूट” जैसी भाषा प्रयोग की गई।
क्या मोदी का रुख ‘थिएटर ऑफ द एब्सर्ड’ से निकलने की शुरुआत नहीं था?
पुरी का बयान उस मानसिकता की आलोचना करता है, जो पाकिस्तान को “टेरर-स्टेट” मानने के बावजूद बातचीत की मेज पर बैठने को प्राथमिकता देती थी। वहीं मोदी सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट एयरस्ट्राइक और ऑपरेशन सिंदूर के ज़रिए स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अब ‘नरमी’ नहीं दिखाएगा।
जब राजनयिक अनुभव नेतृत्व को मजबूत बनाता है
पुरी खुद एक अनुभवी राजनयिक रहे हैं और 1974 से 2013 तक IFS सेवा में रह चुके हैं। उन्होंने खुद उस युग का अनुभव किया है जिसमें भारत की आतंकवाद से निपटने की नीति नाकाफी थी। अब जब वो राजनीति में हैं, तो उनकी टिप्पणियों को अनुभवजन्य दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए, न कि पार्टी लाइन से।
शार्म अल शेख से शिफ्ट कीजिए सिंधु दर्शन
2009 में मनमोहन सिंह और यूसुफ रज़ा गिलानी की शार्म अल शेख में हुई बातचीत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की कमजोरी के रूप में देखा गया, जहां बलूचिस्तान मुद्दे को पाकिस्तान के दावे के अनुसार मान्यता मिल गई। वहीं मोदी सरकार ने पाकिस्तान की आतंक-प्रेरित छवि को विश्वपटल पर उजागर किया।
UPA बनाम NDA: राष्ट्रीय सुरक्षा पर दो दृष्टिकोण
| मुद्दा | UPA (2004-2014) | NDA (2014–वर्तमान) |
|---|---|---|
| 26/11 के बाद प्रतिक्रिया | संयम, केवल कूटनीतिक विरोध | 2016 सर्जिकल स्ट्राइक |
| पाकिस्तान नीति | बातचीत के पक्षधर | ‘बातचीत आतंक के साए में नहीं’ |
| पुलवामा के बाद | कोई बड़ी प्रतिक्रिया नहीं (UPA शासन समाप्त हो चुका था) | बालाकोट एयरस्ट्राइक |
| ऑपरेशन सिंदूर | अस्तित्व में ही नहीं | पाकिस्तान में गहरे जाकर आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया |
पुरी की आलोचना करना आसान, लेकिन सच्चाई को झुठलाना नहीं
हरदीप पुरी का बयान न तो लापरवाही था और न ही राजनीतिक पूर्वग्रह से प्रेरित। बल्कि यह उस भारत की छवि है जो अब आतंकवाद को जवाब देने में संकोच नहीं करता। मोदी सरकार की नीति ने पाकिस्तान को कूटनीतिक, सैन्य और आर्थिक स्तर पर घेरने में सफलता पाई है।
आलोचना हो, पर तथ्यों के आधार पर
विवेक काटजू जैसे अनुभवी कूटनीतिज्ञों से उम्मीद की जाती है कि वे आलोचना करें, परंतु संदर्भ और तथ्यों के आधार पर। हरदीप पुरी का बयान एक नीतिगत बदलाव को प्रतिबिंबित करता है, जो भारत को “सॉफ्ट स्टेट” की छवि से बाहर लाने में सफल रहा है।









