
वैश्विक शक्ति संतुलन बदल रहा है और भारत, जिसे कभी सिर्फ BRICS सदस्य के रूप में देखा जाता था, अब ग्लोबल साउथ के उदय में मौन अग्रणी के रूप में उभर रहा है। लंबे समय तक अपने बड़े पड़ोसी चीन की छाया में छिपा रहने वाला भारत अब केवल विकल्प नहीं बल्कि एक रणनीतिक साझेदार, उत्पादन केंद्र और बहुपरकीय दुनिया में कूटनीतिक विवेक का प्रतीक बनकर सामने आया है।
जहां चीन को नियामक प्रतिबंध, जनसांख्यिकीय गिरावट और निवेशकों के भरोसे में कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं भारत हर मोर्चे पर मजबूत बन रहा है। लगातार पूंजीगत व्यय, निर्यात में वृद्धि, विनिर्माण क्षमता में सुधार और कूटनीतिक संबंधों को मज़बूत बनाकर भारत एक भरोसेमंद शक्ति के रूप में खुद को स्थापित कर रहा है।
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा भारत को “डेड इकोनॉमी” कहे जाने वाली टिप्पणी पूरी तरह गलत साबित हुई। वहीं फ्रांस के प्रधानमंत्री ने भारत के साथ गहरी रणनीतिक और आर्थिक भागीदारी में रुचि दिखाई है। इसी दौरान, ब्रिटेन ने भारत के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए, जो वैश्विक व्यापार और आपूर्ति श्रृंखलाओं में नई स्थिति का संकेत है।
ये संकेत केवल कूटनीतिक प्रदर्शन नहीं हैं, बल्कि यह वैश्विक रणनीतिक गठजोड़ और आपूर्ति श्रृंखलाओं के पुनर्संरेखन का वास्तविक प्रमाण हैं। भारत अब चीन के विकल्प और एक विश्वसनीय रणनीतिक साझेदार के रूप में अपनी जगह मजबूत कर रहा है।









