लिव-इन-रिलेशनशिप या बिना शादी संबंध खतरनाक, मिलेगी ये सजा, कांप जाएगी रूह

रिश्तों की पवित्रता और परिवार की सुरक्षा को अत्यधिक महत्व दिया गया है। मियां-बीवी का रिश्ता केवल सामाजिक नहीं, बल्कि ...

इस्लाम में रिश्तों की पवित्रता और परिवार की सुरक्षा को अत्यधिक महत्व दिया गया है। मियां-बीवी का रिश्ता केवल सामाजिक नहीं, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि लिव-इन रिलेशनशिप, यानी बिना निकाह के साथ रहने का इस्लाम में क्या स्थान है?

इस सवाल का जवाब अलीगढ़ के प्रसिद्ध मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना इफराहीम हुसैन ने एक न्यूज चैनल के माध्यम से दिया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि इस्लाम में लिव-इन रिलेशनशिप की कोई जगह नहीं है। उनके अनुसार, इस्लाम में वही रिश्ता जायज माना गया है जो निकाह के जरिए और शरीयत के मुताबिक, आधिकारिक रूप से किया गया हो। बिना निकाह के मियां-बीवी की तरह संबंध बनाना नाजायज और हराम है। यह अमल जिना (व्यभिचार) के दायरे में आता है, जिसकी सजा इस्लाम में 100 कोड़े रखी गई है।

मौलाना इफराहीम हुसैन ने कहा कि निकाह केवल एक जायज रिश्ता नहीं, बल्कि एक सुन्नत और इबादत भी है। निकाह के बाद महिला को जो सम्मान, अधिकार और सुरक्षा मिलती है, वह अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। बिना निकाह के संबंध बनाए जाने पर, उस संतान को बाप का नाम और विरासत का अधिकार नहीं मिलता। समाज में उसे किसी प्रकार का कानूनी या सामाजिक अधिकार नहीं होता, और वह नाजायज मानी जाती है।

इस प्रकार, मौलाना इफराहीम ने इस्लाम के दृष्टिकोण से यह स्पष्ट किया कि निकाह शरीयत का एक पाक तरीका है जो न केवल रिश्तों को सम्मान देता है, बल्कि समाज में परिवार और संतान की सुरक्षा भी सुनिश्चित करता है। इस्लाम में लिव-इन रिलेशनशिप को हराम करार दिया गया है।

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