
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 102 और बीएनएसएस (106) के तहत जब्ती कार्यवाही पर एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस को जांच के दौरान आरोपी की संपत्ति की जब्ती के लिए पहले मजिस्ट्रेट से मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं है। पुलिस को सिर्फ़ जब्ती की रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को देनी होगी।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर पुलिस को जांच के दौरान संदिग्ध ट्रांजैक्शन मिलते हैं, तो वह संबंधित बैंक को बैंक अकाउंट को फ्रीज़ करने का निर्देश दे सकती है। इस मामले में, प्रभावित पक्ष को जांच पूरी होने के बाद और यदि चार्जशीट दाखिल हो जाए, तो वे मजिस्ट्रेट से संपर्क करके अकाउंट को डीफ्रीज़ करने का अनुरोध कर सकते हैं।
यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का हवाला देते हुए लिया गया, जिसमें कहा गया था कि यदि पुलिस संदिग्ध ट्रांजैक्शन की जांच करती है और उसे लगता है कि संबंधित बैंक अकाउंट को फ्रीज़ किया जाना चाहिए, तो वह सीधे बैंक को ऐसा आदेश दे सकती है। इसके बाद, जांच पूरी होने पर और चार्जशीट दाखिल होने के बाद, प्रभावित पक्ष को संबंधित मजिस्ट्रेट से मदद लेनी होगी ताकि अकाउंट की सीमा को तय किया जा सके।









