सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, गिरफ्तारी के आधार को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश

Desk : सुप्रीम कोर्ट ने आज एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए गिरफ्तार व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों को मजबूत किया। कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी के आधार को लिखित रूप में सूचित किया जाना चाहिए, चाहे मामला भारतीय न्याय संहिता (BNS) या भारतीय दंड संहिता (IPC) से संबंधित हो।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इस महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दे का समाधान किया। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि आपातकालीन परिस्थितियों के कारण गिरफ्तारी के तुरंत बाद आधार प्रदान करना संभव न हो, तो आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने रिमांड पर पेश करने से कम से कम दो घंटे पहले आधार लिखित रूप में दिया जाना चाहिए।

मुख्य मामला “मिहिर राजेश शाह बनाम महाराष्ट्र राज्य” (क्रिमिनल अपील संख्या 2195, 2025) में, कोर्ट ने कई अपीलों की सुनवाई की, जिनमें यह मुद्दा था कि गिरफ्तारी के आधार को लिखित में नहीं दिया गया था, जो संविधान के अनुच्छेद 22(1) और दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 की धारा 50 का उल्लंघन था।

कोर्ट ने अभियुक्तों के अधिकारों और कानून प्रवर्तन के कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाने के लिए दो-स्तरीय प्रक्रिया को स्थापित किया:

मानक मामले: जहां पुलिस के पास दस्तावेजी सामग्री है या आरोपी नोटिस के बाद पेश होता है (जैसे आर्थिक अपराध, पीएमएलए), गिरफ्तारी के समय आरोपी को लिखित रूप में आधार देना अनिवार्य होगा।

असाधारण मामले: शरीर या संपत्ति के विरुद्ध अपराधों में, गिरफ्तारी के समय पुलिस अधिकारी के लिए यह पर्याप्त होगा कि वह आरोपी को मौखिक रूप से गिरफ्तारी का आधार बताएं।

इस फैसले से नागरिकों के अधिकारों की रक्षा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया गया है, और यह पुलिस और कानूनी अधिकारियों को स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करता है

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