अमेरिका से चीन की सीधी लड़ाई की तैयारी, खुफिया प्रोजेक्ट के जरिए ताकत समेटने की कोशिश

अमेरिका के बाद अब चीन अपने खुफिया प्रोजेक्ट के जरिए दुनिया में हलचल मचाने की फिराक में हैं। जैसे गुपचुप तरीके से दुनिया के पहले परमाणु बम को बनाने के लिए अमेरिका में करीब 1.3 लाख लोगों ने मिलकर काम किया था और इसे सफल बनाने में उस समय लगभग 2 बिलियन डॉलर खर्च किए थे, जिनकी आज के समय में तुलना की जाए तो, यह राशि दस गुना से भी ज्यादा हो जाती हैं।

अमेरिका के बाद अब चीन अपने खुफिया प्रोजेक्ट के जरिए दुनिया में हलचल मचाने की फिराक में हैं। जैसे गुपचुप तरीके से दुनिया के पहले परमाणु बम को बनाने के लिए अमेरिका में करीब 1.3 लाख लोगों ने मिलकर काम किया था और इसे सफल बनाने में उस समय लगभग 2 बिलियन डॉलर खर्च किए थे, जिनकी आज के समय में तुलना की जाए तो, यह राशि दस गुना से भी ज्यादा हो जाती हैं। इसा तर्ज पर चीन भी ऐसे ही खुफिया प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है और हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार अगर चीन को इसमें सफलता मिल गई तो वह पश्चिम को ऐसा प्रतियोगिता में सीधी चुनौती देने में कामयाब हो जाएगा, जहां लम्बे समय से पश्चिमी देशों का दबदबा बना हुआ है।

क्या हैं प्रोजेक्ट

यह पूरी लड़ाई सेमीकंडक्टर बनाने में दक्षता हासिल करने की है। दरअसल चीन लंबे समय से सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने का हर सम्भव प्रयास कर रहा है। हालांकि कयास लगाए जा रहें हैं कि हाल के सालों तक चीन दुनिया की सबसे एडवांस चिप बनाने वाली टेक्नोलॉजी तक नहीं पहुंच पाएगा क्योंकि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने एक्सपोर्ट कंट्रोल और टेक्नोलॉजी चोकपॉइंट्स के जरिए चीन के सामने ऐसी दीवार खड़ी कर दी थी, जिसे तोड़ना लगभग नामुमकिन माना जा रहा था। इस दीवार का सबसे अहम हिस्सा है एक्सट्रीम अल्ट्रावायलेट मशीन, जो दुनिया की सबसे जटिल मशीनों में से एक है। इस टेक्नोलॉजी पर अब तक सिर्फ नीदरलैंड की कंपनी ASML का एकाधिकार रहा है वहीं इसी साल अप्रैल में ASML के सीईओ ने भी कहा था कि चीन को EUV टेक्नोलॉजी विकसित करने में अभी बहुत मशक्कत करनी है।

लेकिन हाल ही आई रॉयटर्स की एक रिपोर्ट ने इन दावों को पूरी तरह गलत साबित कर दिया है, जिसमें बताया गया हैं कि चीन के शेनझेन के एक हाई सिक्योरिटी कैंपस में चीनी वैज्ञानिकों ने EUV मशीन का एक प्रोटोटाइप तैयार कर लिया है। इस मशीन को बेहद गोपनीय तरीके से तैयार किया गया है। इसके साथ ही चीन ने सभी भविष्यवाणियों को विफल कर दिया है जिसमें विशेषज्ञों का मानना था कि इस मुकाम तक जाने में चीन को एक दशक से ज्यादा वक्त लगेगा।

क्या है खास और अमेरिका से तुलना क्यों ?

EUV मशीनें अहम इसलिए हैं क्योंकि इनकी मदद से ही सिलिकॉन वेफर पर नैनोमीटर लेवल के सर्किट उकेरे जाते हैं। ये सर्किट एक इंसानी बाल से भी हजारों गुना पतले होते हैं। AI और डिफेंस ग्रेड चिप्स के लिए बेहद जरूरी हैं। जिसकी कीमत करीब 250 मिलियन डॉलर है। इसीलिए इस प्रोजेक्ट को चीन के अधिकारी और इसमें जुड़े इंजीनियर अमेरिका के ‘मैनहैटन प्रोजेक्ट’ से तुलना कर रहे हैं।

चीन के इस EUV मिशन की तुलना अमेरिकी मैनहैटन प्रोजेक्ट से इसीलिए की जा रही है, क्योंकि चीन की यह योजना भी राष्ट्रव्यापी मिलिट्री सेंसिटिव और सेंट्रली कंट्रोल्ड है। इस योजना पर हजारों इंजीनियर, यूनिवर्सिटीज, स्टेट लैब्स और हुवावे जैसी बड़ी कंपनियां भी शामिल हैं। वहीं रिपोर्ट के मुताबिक पूरा प्रोजेक्ट चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के करीबी और सेंट्रल साइंस एंड टेक्नोलॉजी कमिशन के प्रमुख डिंग शुएशियांग की निगरानी में चल रहा है। चीन ने इस प्रोजेक्ट को पूरी तरह गोपनीय रखा था। रिपोर्ट के मुताबिक यहां टीमों को एक-दूसरे से तक अलग रखा गया है और बेहद कम लोगों को इस मिशन की पूरी जानकारी दी गई है।

इसके साथ ही कई इंजीनियर दूसरी पहचान रखकर काम कर रहे हैं और कैंपस में ही रहते हुए बाहर की दुनिया से संपर्क भी सीमित कर दिया जाता है। विशेषज्ञों की मानें तो चीन के लिए यह सिर्फ टेक्नोलॉजी का सवाल नहीं है, बल्कि विश्व संप्रभुता का मामला है। चीन के लिए यह प्रोजेक्ट बेहद अहम इसलिए भी है क्योंकि सेमीकंडक्टर पर कंट्रोल का सीधा मतलब, AI, क्वांटम कंप्यूटिंग, मॉडर्न वॉरफेयर और ग्लोबल इकोनॉमी की डिजिटल नींव पर पकड़ है।

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