
2025 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआइ) ने भारतीय शेयर बाजारों से अब तक की सबसे बड़ी निकासी की है। इस साल एफपीआइ ने कुल 158 लाख करोड़ रुपये की निकासी की, जो भारतीय शेयर बाजारों के इतिहास में एक रिकॉर्ड है। इस निकासी का प्रमुख कारण वैश्विक आर्थिक उतार-चढ़ाव, वैश्विक व्यापार तनाव, अमेरिकी टैरिफ से जुड़ी अनिश्चितताएं और उच्च मूल्यांकन था। इन कारणों से विदेशी निवेशकों ने कम जोखिम वाले विकल्पों की ओर रुख किया।
2025 की एफपीआइ निकासी ने 2022 के रिकॉर्ड को भी पीछे छोड़ा:
नेशनल सिक्योरिटीज डिपाजिटरी लिमिटेड (एनएसडीएल) के आंकड़ों के अनुसार, 26 दिसंबर तक एफपीआइ भारतीय शेयरों से 138,429 करोड़ रुपये की निकासी कर चुके थे। हालांकि, इस दौरान हेट और बांड बाजारों में 59,393 करोड़ रुपये का निवेश किया गया। यह निकासी 2022 में एफपीआइ द्वारा की गई 1.21 लाख करोड़ रुपये की रिकॉर्ड निकासी को भी पीछे छोड़ चुकी है।
एफपीआइ निवेश का झुकाव:
एफपीआइ ने इस वर्ष शेयर बाजारों से निकासी की, लेकिन बांड बाजारों में उनका निवेश अधिक रहा। विशेष रूप से, वित्तीय सेवाओं और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्रों से एफपीआइ ने सबसे अधिक निकासी की है, जबकि स्वास्थ्य देखभाल और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र ने निवेशकों को आकर्षित किया।
विश्लेषकों की राय:
शोध उपाध्यक्ष और अर्थशास्त्री गरिमा कपूर ने कहा कि, “हमें उम्मीद है कि एफपीआइ भारत में स्थायी रूप से लौटेंगे। 2026 के कैलेंडर वर्ष में nominal वृद्धि और आय में सुधार की उम्मीद है। अमेरिका के साथ व्यापार सौदे से टैरिफ अंतर को कम किया जाएगा और फेड की दर में कटौती डॉलर को कमजोर रखेगी, जिससे उभरते बाजारों को लाभ होगा।”
घरेलू कारकों से भी मदद मिल सकती है:
ओम्नीसाइंस कैपिटल के सीईओ और मुख्य निवेश रणनीतिकार विकास गुप्ता ने कहा कि भारतीय आय की वृद्धि, नीतिगत निरंतरता और सुधार जैसे घरेलू कारक भी एफपीआइ निवेश को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।









