
भारतीय रुपये की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। रुपया शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 16 पैसे टूटकर अब तक के सबसे निचले स्तर 82.33 पर आ गया। पिछले सत्र में रुपया 81.88 पर बंद हुआ था। भारत आवश्यक बिजली के सामान और मशीनरी सहित कई दवाओं का भारी मात्रा में आयात करता है।
अधिकांश मोबाइल गैजेट चीन और अन्य पूर्वी एशियाई शहरों से आयात किए जाते हैं। अगर रुपये का मूल्यह्रास इसी तरह जारी रहा, तो आयात महंगा हो जाएगा और अधिक खर्च करना होगा। भारतीय कंपनियां सस्ती दरों पर विदेशों से भारी मात्रा में कर्ज जुटाती हैं। जब रुपया कमजोर होता है तो भारतीय कंपनियों के लिए विदेशों से कर्ज जुटाना महंगा हो जाता है। इससे उनकी लागत बढ़ जाती है, व्यवसाय के विस्तार की उनकी योजनाओं को स्थगित कर दिया जाता है। इससे देश में रोजगार के अवसर कम हो सकते हैं।
विदेशों में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों को आवास, कॉलेज की फीस, भोजन और परिवहन पर डॉलर में खर्च करना पड़ता है। ऐसे में रुपये के कमजोर होने से उन छात्रों को पहले से ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे।









