
राज्य की तरफ से काउंटर एफिडेविट फ़ाइल करने में देरी व फाइलिंग क़े दौरान त्रुटियां होने पर इलाहबाद उच्च न्यायालय ने सख्त टिप्पणी की है। एक मामले में शाहजहांपुर क़े एसएसपी को अपना शपथ पत्र देना था परन्तु शाहजहांपुर क़े स्थान पर गाज़ियाबाद अंकित कर दिया तथा उसी मामले में दोबारा विवेचक ने बिना न्यायालय की अनुमति क़े दूसरा शपथ पत्र दाखिल कर दिया। इस मामले में न्यायालय ने नाराजगी व्यक्त की तथा यह भी टिप्पणी की कि आसान अंग्रेजी भाषा भी अधिकारियों समझ से परे है तथा शपथपत्र फाइलिंग में देरी क़े कारण न्यायालय का कीमती समय भी बर्बाद होता है, नोटरी अधिवक्ता क़े बिना पढ़े शपथ पत्र को नोटरी करने पर उसके विरुद्ध जांच क़े आदेश दिए तथा प्रमुख सचिव गृह, प्रमुख सचिव विधि तथा शासकीय अधिवक्ता से जवाब इस आशय का तलब किया है कि उन शासकीय अधिवक्ताओं की कार्यशैली व कार्यवाही से अवगत कराएं जो सही ढंग से काम नहीं कर रहे हैं, इस आदेश से अवश्य ही उन मामलों में राहत मिलेगी जिनमे लम्बे समय तक जवाब दाखिल न होने क़े कारण मुक़दमे लंबित रहते हैं।
न्यायालय यह मानने के लिए विवश है कि राज्य के अधिकारियों की शिथिलता के कारण न्यायालय का कीमती समय बर्बाद होता है। ऊपर उल्लिखित तथ्य एक ज्वलंत उदाहरण है। ऐसा प्रतीत होता है कि कोर्ट के आदेशों में अधिकारी भी सरल अंग्रेजी भाषा नहीं समझते हैं। पुलिस अधीक्षक शाहजहाँपुर के व्यक्तिगत हलफनामे के माध्यम से एक जवाबी हलफनामा दायर करने का एक विशेष निर्देश था, लेकिन इसके सही अक्षरशः अनुपालन के बजाय बिना अधिकार या अनुमति के न्यायालय बेद पाल सिंह पुलिस उपनिरीक्षक, पुलिस थाना निगोही, जिला शाहजहाँपुर द्वारा प्रतिशपथ पत्र दाखिल किया गया है तथा पुलिस अधीक्षक द्वारा इस न्यायालय के आदेश का अनुपालन न करने का कोई कारण नहीं बताया गया है।
बता दें कि प्रमुख सचिव गृह और प्रमुख सचिव कानून एवं एल.आर को या उससे पहले राज्य के अधिकारियों के साथ-साथ अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ताओं के आचरण की व्याख्या करते हुए अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करेंगे, जो राज्य की ओर से हलफनामे का मसौदा तैयार करने और तैयार करने में ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। इस न्यायालय द्वारा दिए गए समय तक व्यक्तिगत हलफनामे दायर नहीं किए जाने की स्थिति में, यह न्यायालय के समक्ष उनकी व्यक्तिगत उपस्थिति के लिए एक आदेश पारित करने पर विचार करेगा।









