
ग्वालियर : तुलसी मानस प्रतिष्ठान मानस भवन ग्वालियर द्वारा ‘आनंद मय जीवन के लिए उपनिषद ज्ञान की आवश्यकता ‘ की व्याख्या करते हुए आज प्रदीप भालचंद्र लगाटे ने कहा कि वेदों के अंतिम भाग को वेदांत कहा जाता है यह ज्ञान ध्याननस्थ ऋषियो को ऋतंभरा प्रज्ञा के द्वारा श्रुत हुआ इसलिए इसे श्रुति भी कहा जाता है यह ज्ञान कांड होने से वेदों के सिरोभाग (सर्वश्रेष्ठ) कहे गए हैं और गुरु परंपरा से यह ज्ञान शिष्यों का अज्ञान मिटाने वाला होने से उपनिषद भी कहलाते हैं।
इस संसार में जो कुछ भी जड़ चेतन यानी चराचरात्मक वास्तव में यह सब ईश्वर से आच्छादनीय है इसलिए हमें इस जगत की प्रत्येक वस्तु – व्यक्ति मैं ईश्वर जानने का उपदेश उपनिषद करते हैं। माया के आवरण को भंग करके हर एक में निहित ईश्वर के दर्शन हो जाने के बाद ‘ वसुदेव कुटुंबकम’ की दृष्टि उपनिषद के जानने वाले को प्राप्त हो जाती हैं। वेद की हर उपनिषद का एक ‘ शांति पाठ ‘ होता है जिसे आरंभ में पढ़कर अत: करण की एकाग्रता की प्रार्थना की जाती है।
आने वाले सत्रो में हम क्रम से प्रथम स्थान पर जो ” ईशा वास्यों पनिषद ‘ है उसका अभ्यास करेंगे। कार्यक्रम के प्रारंभ में दीप प्रज्वलन प्रदीप लगाटे, सहित संस्था के अध्यक्ष अभय पापरीकर, सर्व महेश मुद्गल, राकेश दीक्षित, रामबाबू कटारे, जेपी पाठक आदि द्वारा किया गया। महाराज का स्वागत मदन गोपाल बरुआ, आदर्श शर्मा, निशीकांत सुरंगे ,आशा पापरीकर, योगेश गुप्ता आदि ने किया।









