
अब बात सत्य और तथ्य की करें तो राजनीति में ना तो कोई स्थाई दुश्मन होता है और ना कोई स्थाई दोस्त और ये बात भला बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बेहतर कौन समझ सकता है. शायद यही वजह है कि ‘चुनाव हुए 5 बार और नीतीश सीएम बने 9 बार. लेकिन ये भी कहा जाता है कि ये पब्लिक है, सब जानती है. नेताओं के मन में क्या है. नेताओं की जुंबा पर क्या है. पब्लिक सबकुछ पहचानती है.
आपको बता दें कि कहां तो नीतीश कसमें खा रहे थे कि वो मर जाएंगे, मिट जाएगें. लेकिन बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे. अब मौकापरस्ती की ऐसी हवा चली कि देखते ही देखते नीतीश कुमार ने एक बार फिर पलटीमार दी और भाजपा में शामिल होकर फिर से मुख्यमंत्री बन गए. लेकिन नीतीश कुमार के पाला बदलने का पुराना इतिहास रहा है.
नीतीश ने पहली बार 1994 में जनता दल से अलग नई राह चुनी थी और 1996 में बीजेपी से पहली बार हाथ मिलाया और 2013 में छूटा था साथ ही 2015 में राजद के साथ मिलकर नीतीश कुमार ने नई सरकार बनाई थी और फिर मुख्यमंत्री बने थे.
आपको बताते चलें कि बिहार में नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देकर जिस तरह कुछ ही घंटे के अंदर फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, उससे एक बार पुनः यह स्पष्ट हुआ कि उनके लिए राजनीतिक मूल्यों-मर्यादाओं का कोई महत्व नहीं. अपनी सत्ता बचाने और मुख्यमंत्री बने रहने के लिए नीतीश कुमार कुछ भी कर सकते हैं.









