काशी में कन्याओं को मिली धार्मिक आजादी, सामूहिक उपनयन संस्कार करा बेटियों समाज को दिया संदेश!

काशी में तमाम रूढ़ियों को तोड़ 5 बेटियों ने उपनयन संस्कार कर इस मान्यता के प्रति विद्रोह कर दिया की लड़कियों का उपनयन नही होता है।

Varanasi News: देश में मुगलकाल आक्रांताओं के भय से सनातन परंपरा में बंद हो चुके किशोरियों का उपनयन संस्कार एक बार फिर धर्म की नगरी काशी में शुरू हो गया है। काशी की बेटियों ने बेटो के साथ उपनयन संस्कार कर समाज के एक रूढ़िवादी सोच को समाप्त कर दिया। काशी की बेटियों का उपनयन संस्कार वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ किया गया।राजसूत्र पीठ के माध्यम काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आचार्य रोहतम ने सामूहिक उपनयन संस्कार को संपन्न करवाया। इस उपनयन संस्कार में पहली बार बेटो के साथ बेटियों का उपनयन संस्कार संपन्न करवाया गया।

बेटो के साथ बेटियों ने उपनयन करा धारण किया जनेऊ, सनातन संस्कृति को दे रही बढ़ावा

 काशी में तमाम रूढ़ियों को तोड़ 5 बेटियों ने उपनयन संस्कार कर इस मान्यता के प्रति विद्रोह कर दिया की लड़कियों का उपनयन नही होता है। उपनयन,जनेऊ या यज्ञोपवीत की बात करे तो यह सनातन धर्म के प्रमुख संस्कारों में माना जाता है लेकिन कहने को तो यह सनातन संस्कार है लेकिन यह कुछ जाति विशेष में रह गया है। ब्राह्मण इसे 8 से 12 साल के उम्र में तो राजपूत इसे विवाह के समय विवाह मंडप में करते है। जबकि यह शिक्षा का संस्कार है और शिक्षा ग्रहण के दौरान ही सभी का  संस्कार हो जाना चाहिए। काशी नगरी अपनी 5 बेटियों समेत 12 बच्चों का सामूहिक उपनयन संस्कार संपादित कर एक नया और विद्रोही संदेश दिया है। यज्ञोपवीत जिसे हम उपनयन या जनेऊ संस्कार के रूप में जानते हैं, शिक्षा एवं अनुशासन का संस्कार है जो कि व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों में उन्नत करते हुए निस्वार्थ भाव से व्यक्ति के स्वयं के जीवन के साथ ही साथ परिवार, समाज, देश, संपूर्ण प्रकृति तक के हित में व्यक्ति को कार्य करने की प्रेरणा देता है।

वेदों में कन्याओं के उपनयन का है उल्लेख, मुगल आक्रांताओं की वजह से लुप्त हुई परंपरा

कन्या के उपनयन के बारे में आचार्य भक्तिपूत्रम रोहतमं ने बताया की यह तो वेदों में उल्लेख है,कि कन्या उपनयन संस्कार के बाद शिक्षा ग्रहण करके ही योग्य वर का चयन करेगी। अर्थात शिक्षा और संस्कार में स्त्री भी अनादि काल से प्रमुख रही है और मुगल काल से पूर्व तक सनातन में कन्या का उपनयन होता रहा लेकिन मुगल काल में हिंदू कन्याओं के अपहरण गलत आचरण से भय वश लड़कियों का संस्कार बंद हो गया था और आजादी के बाद भी अब तक इसे किसी ने पुनः प्रारंभ करने का प्रयास नही किया।  लेकिन राजसूत्र द्वारा इसे शुरू करना सनातन संस्कार को दृष्टि से एक एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।

समाज में बेटियों को मिल रहा समानता का अधिकार, बेटियां कर रही सनातन का सम्मान

इस बारे में उपनयन कराने वाली बेटी ले पिता दृग बिंदु मणि सिंह साफ कहते है, जब बिटिया शमशान में कंधा देने जा सकती है तो जनेऊ क्यों न धारण करे और यह तो हमारे धर्म ग्रंथ में है अतः इसे समाज हित में शुरू करना एक अच्छा कदम है। राजसूत्र पीठ के ट्रस्टी कुश प्रताप के अनुसार यह सिर्फ अध्यात्म और धर्म का विषय नहीं बल्कि विज्ञान पर आधारित है इससे बच्चों में अनुशासन का निर्माण के साथ हेल्थ के लिए एक बेहतर कदम है और पीठ द्वारा समाज के बच्चों को जागृत करने के साथ उनमें संस्कार भरना महत्वपूर्ण है खासकर बेटियो को समृद्ध करना है और बेटी पढ़ाओ के नारे को स्थान देना है तो बेटी का उपनयन भी करना ही होगा। रूढ़ियों को तोड़ना होगा।

 कुश प्रताप  के अनुसार जब उन्होंने बेटियों के उपनयन की बातें लोगों में रखी तो शुरू में लोगों ने इसे पागलपन और सनक करार दिया लेकिन जब इसके महत्व को जाना तो अपनी बेटियों को इस आयोजन में शामिल किया। इस बार 12 बच्चों का हो संस्कार हो पाया क्योंकि परीक्षा का समय है, लेकिन ग्रीष्मावकाश के समय 101 बच्चों का पुनः सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार होगा। जिसमे 50 प्रतिशत बिटिया भी होगी।

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