
उत्तर प्रदेश की 10 राजयसभा सीटों के लिए जारी मतदान समाप्त हो चूका है। इस बार के चुनाव का माहौल बड़ा दिलचस्प रहा। एक तरफ जहां सपा के आंड में कांग्रेस अपने यूपी की सत्ता को बचाने में लगी थी, तो दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी अपने जीत में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। आखिरकार, मंगलवार यानी 27 फ़रवरी को इन सभी पार्टियों के मेहनत का अंतिम परिणाम निकल ही आया, जिसमे जीत भारतीय जनता पार्टी को मिली है। दरअसल, आज सुबह 9 बजे से राजयसभा चुनाव के लिए मतदान शुरू हुआ और 4 बजे तक ये प्रक्रिया चली। मगर मतदान के शुरुआत से लेकर अंत तक समाजवादी पार्टी का समय सदमे में गुजरा है। वहीं, सपा का हाथ थाम कांग्रेस जो उम्मीद लगाए बैठी थी उसपर भी पानी फिर गया।
ऐसे में राज्यसभा के इस रोचक मुकाबले में बीजेपी के संजय सेठ को 29 और सपा के आलोक रंजन को वरीयता के 19 मत ही हासिल हो पाए। BJP और सपा दोनो तरफ से महत्वपूर्ण प्रत्याशियों को मानक से अधिक वोट डलवाए गए थे ताकि उनकी जीत में कोई रिस्क न रह जाए।
इन सबके पीछे जो मुख्य कारण रहा, वो था सपा में पड़ी आपसी फुट जिसने यूपी में समाजवादियों को ऐन वक़्त पर धोखा देकर BJP को एक बार फिर ऐतिहासिक जीत दिलाई है। तो चलिए जानते हैं कैसे समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और कांग्रेस के राहुल गाँधी का साथ एक बार फिर यूपी के सियासी जगत में ज्यादा दिन टिक नहीं पाया।
हार का सबसे मुख्य कारण बने सपा के इन 7 विधायकों की क्रॉस वोटिंग
उत्तर प्रदेश के राज्यसभा चुनाव में आज का दिन समाजवादी पार्टी के लिए किसी काले दिन से कम नहीं होगा। जिस तरह से पार्टी के 7 विधायकों ने उनका साथ छोड़ा है यह बात सपा को लम्बे समय तक याद रहेगी। हालांकि, कल पार्टी मीटिंग में जब ये विधायक नहीं पहुंचे थे तभी से ये अटकले लग रहीं थी कि ये विधायक आज के मतदान में क्रॉस वोटिंग कर सकते हैं। हुआ भी कुछ ऐसा ही, दरअसल आज वोटिंग के दौरान सपा के मुख्य सचेतक रहे मनोज पांडेय और राकेश पांडे के साथ ही राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह, विनोद चतुर्वेदी, पूजा पाल और आशुतोष मौर्य ने बीजेपी उम्मीदवार को वोट किया है। वहीँ एक विधायक महाराजी प्रजापति वोट डालने पहुंचे ही नहीं। ऐसे में सुबह तक अपने तीनों उम्मीदवारों की जीत के दावे करने वाली सपा भी चुनाव के अंत होते होते ये मान गई कि उसके तीसरे उम्मीदवार की जीत मुश्किल है। जिसका कारण उन्हीं के विधायकों की क्रॉस वोटिंग वजह है।
कुंडा के राजा भैया ने भी कर दिया खेला
वहीं, कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह ने भी इस चुनाव में किंगमेकर की भूमिका निभाई है। हाल ही में राजा भैया के ऊपर सभी पार्टियों की नजर टिकी हुई थी। उनका वोट अपने उम्मीदवार के पाले में सभी ने खूब जोर आजमाइस भी किया था। मगर फायदा उसमे सर BJP को हुआ। कल समजवादी पार्टी का दिल तोड़ते हुए राजा भैया ने भी अपना वोट बीजेपी के पक्ष में देने का ऐलान कर दिया था। आज उनके दोनों विधायकों का वोट भाजपा के उम्मीदवार संजय सेठ के पक्ष में डाला गया।
BSP ने भी निभाया महत्वपूर्ण रोल
अगर ध्यान से देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए संभल, गाजीपुर, अमरोहा और मुरादाबाद मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण और मैनपुरी, बदायूं, आजमगढ़ और फिरोजाबाद सपा का गढ़ होने के कारण मुश्किल सीटें हैं। इस बीच सूत्रों से खबर आई थी कि इन्हीं सीटों को अपने लिए चुनौती मानते हुए BJP ने अखिलेश और राहुल के गठबंधन को मात देने के रणनीति के तहत मायावती से पर्दे के पीछे साथ देने का डील कर लिया था।
भाजपा चाहती थी कि मायावती मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर दमदार मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर और अपने कोर वोटर को सपा कांग्रेस से दूर रखकर वोटों का बंटवारा करने में महती भूमिका निभाए। इससे मुश्किल सीटों पर भाजपा उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित हो सकेगी। हालांकि, मायावती ने ऐसा तो नहीं किया मगर अपने एकमात्र विधायक का वोट BJP के पाले में डालते हुए बुआ ने भतीजे से 2017 में मिले धोखा का बदला जरूर ले लिया है। इस बात का ऐलान उन्होंने पहले भी किया था कि अब वो चुनाव में जीते या न जीते मगर सपा को नहीं जीतने देंगी।
अंत में अखिलेश यादव के इन हालातों पर एक फिल्म का डायलाग बड़ा सूट करता है। ‘हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहाँ दम था…. बहरहाल, जो गिर कर भी संभालता है उसे कभी न कभी जीत जरूर मिलती है। अब अखिलेश यादव ने भी यही सोचते हुए लोकसभा चुनाव के तरफ रुख करते हुए फिर से आगे बढ़ने का फैसला किया है। जहां ये देखना दिलचस्प होगा कि ये पार्टी इस बार के हार से क्या सीख लेगी और क्या इसी गठबंधन और समीकरण के साथ अगला चुनाव भी लड़ेगी या फिर एक नए सिरे से शुरुआत करेगी।








