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भारतीय राजनीती के अजातशत्रु, कालजयी कवि, युगपुरुष और भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी का आज जन्मदिवस है। पूरा देश शनिवार को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 97वीं जयंती मनाएगा। 25 दिसंबर, 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर में जन्मे कालजयी अटल का जन्मदिवस साल 2014 से हर साल सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है।
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दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी एक वाक्पटु वक्ता और विपुल लेखक थे, और अपनी लोकप्रिय कविताओं के लिए जाने जाते हैं। अटल बिहारी बाजपेयी राष्ट्रभाषा हिंदी के पुरजोर समर्थक रहे। शायद यही कारण है कि उन्होंने ने अपनी अधिकांश कवितायें हिंदी में लिखी। अपने राजनैतिक करियर की शुरआत में अटल बिहारी बाजपेयी शुरुआत में वाजपेयी, तत्कालीन जनसंघ से जुड़े और बाद में जब जनसंघ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) बन गया तो वो इसके सक्रिय सदस्य बन गए।
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अटल जी ने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण विभागों को संभाला। वो विदेश मामलों जैसे महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री भी रहे। इस दौरान साल 1977 में उनका संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में सम्बोधन आज किसे याद नहीं होगा। बतौर विदेश मंत्री उन्होंने साल 1977 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण देने वाले पहले नेता बने।
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पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में उनके मित्रों, साथियों, सहयोगियों और टिप्पणीकारों ने अनगिनत किस्से सुनाए हैं। अटल बिहारी बाजपेयी का व्यक्तित्व, उनकी राजनैतिक नैतिकता और उनका जीवन आधुनिकता, प्रगति और समानता पर ध्यान केंद्रित करते हुए राष्ट्र-प्रथम सिद्धांत पर आधारित था।
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एक बार अनुसूचित जाति समुदाय की एक बैठक में बोलते हुए, अटल जी ने कहा था, “न हम मनुवादी हैं, न ब्राह्मणवादी हैं, हम संविधानवादी हैं और इसलिए हम अंबेडकरवादी हैं”। उन्होंने अपने इस कथन से तत्कालीन समाज में व्याप्त समुदाय विशेष के प्रति रूढ़िवादी और जातियता से ग्रसित सोच पर करारा प्रहार किया। उनका तात्पर्य यह था कि “हम न तो मनुवादी हैं, न ही ब्राह्मणवादी। हम संविधानवादी हैं, और इसीलिए हम भीमराव रामजी अम्बेडकर के सिद्धांतों का पालन करते हैं। उनका यह कथन कई मायनों में, सामाजिक समतावाद के सिद्धांतों और व्यवहार में अटल जी के गहरे और स्थायी विश्वास को दर्शाता है।
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वह लोकतंत्र के वर्तमान स्वरुप के एक सर्वोत्कृष्ठ व्यक्तित्व थे, जिसने वह अभ्यास किया जिसमें उन्हें महारथ हांसिल की थी। अटल बिहारी बाजपेयी लोकतांत्रिक मूल्यों की जमकर रक्षा करने के लिए अपने कर्तव्य पथ से अडिग रहने वाले व्यतक्ति थे। आपातकाल के काले दिनों में उनका कारावास इस विशेषता का एक ज्वलंत उदाहरण है।
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अटल जी संगठन में एक गहरी जड़ें जमाने वाले के व्यक्ति भी थे, जिन्हें अपनी राजनीतिक पार्टी के साथ अपनी पहचान पर बहुत गर्व था। लोकतंत्र को बचाने के लिए जनसंघ का 1978 में जनता पार्टी में विलय हो गया था। यह एक ऐसा कदम था जो भारी आशा और वायदे से भरा हुआ था। इस राजनीतिक प्रयोग की विफलता से अटल जी को गहरी निराशा हुई, जिसकी अभिव्यक्ति प्रसिद्ध कविता “राह कौनसी जाऊं मैं (किस रास्ते मैं जाऊं)” में हुई।
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लेकिन, एक सच्चे राजनेता की तरह और अपनी राजनीतिक दृष्टि में अपने दृढ़ विश्वास से प्रेरित होकर, अटल जी ने लिखा “गीत नया गाता हूं”। यह एक ऐसी प्रेरक कविता थी जिसने भारतीय जनता पार्टी के गठन को प्रेरित किया। इसका परिणाम यह रहा कि साल 1980 भाजपा का गठन हुआ। अटल जी की इस पार्टी ने वर्तमान राजनीति में एक ऐसा विकल्प पेश किया जिसने आम जनता के दिलों को जीतने में कामयाब रही। अटल जी की भाजपा अब दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में विकसित हो चुकी है और बड़े स्तर पर आम जनमानस की सर्वस्वीकार्यता भी इस दल को प्राप्त है।
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भाजपा के मुंबई अधिवेशन में उनकी समापन टिप्पणी आशा और सकारात्मकता से भरी हुई थी जिसने लाखों लोगों को प्रेरित करने वाली दृष्टि रखी। उन्होंने कहा “अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा” जिसका अर्थ था “अंधेरा समाप्त हो जाएगा, सूर्य उदय होगा, कमल खिलेगा।” यह कथन एक रूपक अनुप्रास से अधिक था। इसने इस देश में करोड़ों लोगों के लिए नई आशा की पेशकश की, जिन्होंने वंश-शासित कांग्रेस के विकल्प की तलाश की, जो तब तक बदसूरत भ्रष्ट प्रथाओं और मनमानी प्रशासन की विशेषता मानी जाती थी।
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अटल जी ने अपना पूरा जीवन देश को समर्पित कर दिया। उनके लिए, भारत केवल भौगोलिक विस्तार का एक टुकड़ा नहीं था, यह एक सतत विकसित होने वाली मानवीय सभ्यता थी। मातृभूमि के प्रति अपने उदात्त प्रेम को उनके शब्दों और कविता में स्पष्ट देखा जा सकता है। उन्होंने भारत के लिए प्रसिद्ध रूप से लिखा “यह वंदन की भूमि है, अभिनंदन की भूमि है, यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है | इसका कंकड़-कंकड़ शंकर, इसका बिंदु-बिंदु गंगाजल है। हम जियेंगे तो इस्के लिए, मारेंगे तो इसके लिए।”
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अटल जी विकास के प्रतीक थे। उनके कार्यकाल के दौरान स्वर्णिम चतुर्भुज, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना और इस तरह की अन्य प्रतिष्ठित परियोजनाओं की परिकल्पना और क्रियान्वयन किया गया था। देश की क्षेत्रीय अखंडता पर वाजपेयी के अटूट और निरंतर ध्यान ने भारत की विदेश नीति को आकार दिया। वह हमेशा शांति को एक मौका देने के लिए तैयार थे, लेकिन देश की सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता की कीमत पर नहीं, क्योंकि यह उनके लिए गैर-परक्राम्य था।
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अटल जी का यह सिद्धांत उनकी राजनीति का गहरा दार्शनिक आधार रहा। उन्हें समाज की शक्ति पर अटूट विश्वास था। उन्होंने राष्ट्र के हित को सर्वोपरि रखा और जटिल समस्याओं को हल करने के लिए सांप्रदायिक और राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठे। वह सैद्धांतिक रुख अपनाने से नहीं डरते थे। अटल जी का पूरा व्यक्तित्व सामाजिक समरसता, सैद्धांतिक राजनीति दर्शन और उद्दात्त राष्ट्रप्रेम की भावना से सराबोर था जो आने वाली पीढ़ियों के लिए शिरोधार्य करने का हमेशा एक उदहारण रहेगा।