
Ayodhya Ram Mandir: अयोध्या में 22 जनवरी को भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। रामलला के प्राण प्रतिष्ठा का रास्ता आसान नहीं था। इसका इतिहास करीब 491 वर्ष पुराना है। इस दौरान कई उतार चढ़ाव आए। लेकिन रामभक्तों ने हार नहीं मानी। जिसका परिणाम आप सबके सामने है। इस लेख में राम जन्मभूमि में बनने का रास्ता इतना भी आसान नहीं था। इस लेख में राम जन्मभूमि और मंदिर से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियों के बारे में विस्तार से समाझाएंगे।
राम जन्मभूमि का विवाद की शुरुआत बाबरी मस्जिद के निर्माण (सन 1528) साथ ही शुरू हुई। बाबरी मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट के कमांडर मीर बाकी ने कराया था। उसने ही इस मस्जिद का नाम मीर बाबरी रखा था।
कोर्ट में पहली बार यह मामला 1985 में पहुंचा। जब महंत रघुवर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे राम मंदिर के निर्माण के लिए अपील दायर की थी।
1949 में मस्जिद के विवादित ढांचे के नीचे रामलला की मूर्ति प्रकट हुई। इसके बाद वहां राम भक्त पूजा करने लगे।
पूजा के अधिकार के लिए पहला मुकदमा 1950 फैजाबाद कोर्ट में गोपाल सिंह विशारद दायर की थी। लोगों ने कोर्ट से पूजा की इजाजत मांगी। जिसमें कोर्ट ने हिन्दुओं को पूजा की इजाजत दे दी। इसी वर्ष परमहंस रामचंद्र दास ने पूजा और मूर्तियों को रखने के लिए फैजाबाद कोर्ट में याचिका दायर किया। इस याचिका के बाद से ही राम मंदिर आंदोलन को नई धार मिली।
इसके बाद निर्मोही अखाड़ा ने साल 1959 में विवादित स्थल पर कब्जे के लिए मुकदमा दायर किया। वहीं, उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी कब्जे को लेकर वर्ष 1981 में मुकदमा किया।
एक फरवरी, 1986 हिन्दुओं के लिए काफी महत्वपूर्ण रहा। कोर्ट ने इसी दिन हिंदुओं की पूजा के लिए स्थल को खोलने का आदेश दिया था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिन्दू पक्ष को राहत देते हुए 14 अगस्त, 1989 में मामले में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।
30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस स्थल को तीनों पक्षों श्री राम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था।
नौ नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन तक लगातार सुनवाई के बाद पांच जजों ने राम मंदिर के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इसके साथ ही 2.77 एकड़ की जमीन के विवाद पर फुल स्टॉप लग गया। कोर्ट ने मस्जिद के लिए अलग से पांच एकड़ जमीन मुहैया कराने के लिए कहा।
राम मंदिर की प्रमुख विशेषताएं
मंदिर परम्परागत नागर शैली में बनाया जा रहा है।
मंदिर की लंबाई (पूर्व से पश्चिम) 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट तथा ऊंचाई 161 फीट रहेगी।
मंदिर तीन मंजिला रहेगा। प्रत्येक मंजिल की ऊंचाई 20 फीट रहेगी। मंदिर में कुल 392 खंभे व 44 द्वार होंगे।
मुख्य गर्भगृह में प्रभु श्रीराम का बाल रूप (श्री रामलला सरकार का विग्रह), तथा प्रथम तल पर श्री राम दरबार होगा।
मंदिर में 5 मंडप होंगे: नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप व कीर्तन मंडप
खंभों व दीवारों में देवी देवता तथा वीरांगनाओं की मूर्तियां उकेरी जा रही हैं।
मंदिर में प्रवेश पूर्व दिशा से, 32 सीढ़ियां चढ़कर सिंहद्वार से होगा।
दिव्यांगजन एवं वृद्धों के लिए मंदिर में रैम्प व लिफ्ट की व्यवस्था रहेगी।
मंदिर के चारों ओर चारों ओर आयताकार परकोटा रहेगा। चारों दिशाओं में इसकी कुल लंबाई 732 मीटर तथा चौड़ाई 14 फीट होगी।
परकोटा के चारों कोनों पर सूर्यदेव, मां भगवती, गणपति व भगवान शिव को समर्पित चार मंदिरों का निर्माण होगा। उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा, व दक्षिणी भुजा में हनुमान जी का मंदिर रहेगा।
मंदिर के समीप पौराणिक काल का सीताकूप विद्यमान रहेगा।
मंदिर परिसर में प्रस्तावित अन्य मंदिर- महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषादराज, माता शबरी व ऋषिपत्नी देवी अहिल्या को समर्पित होंगे।
दक्षिण पश्चिमी भाग में नवरत्न कुबेर टीला पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है एवं तथा वहां जटायु प्रतिमा की स्थापना की गई है।
मंदिर में लोहे का प्रयोग नहीं होगा। धरती के ऊपर बिलकुल भी कंक्रीट नहीं है।
मंदिर के नीचे 14 मीटर मोटी रोलर कॉम्पैक्टर कंक्रीट (RCC) बिछाई गई है। इसे कृत्रिम चट्टान का रूप दिया गया है।
मंदिर को धरती की नमी से बचाने के लिए 21 फीट ऊंची प्लिंथ ग्रेनाइट से बनाई गई है।
मंदिर परिसर में स्वतंत्र रूप से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, वाटर ट्रीटमेंट प्लांट, अग्निशमन के लिए जल व्यवस्था तथा स्वतंत्र पावर स्टेशन का निर्माण किया गया है, ताकि बाहरी संसाधनों पर न्यूनतम निर्भरता रहे।
25 हजार क्षमता वाले एक दर्शनार्थी सुविधा केंद्र (Pilgrims Facility Centre) का निर्माण किया जा रहा है, जहां दर्शनार्थियों का सामान रखने के लिए लॉकर व चिकित्सा की सुविधा रहेगी।
मंदिर परिसर में स्नानागार, शौचालय, वॉश बेसिन, ओपन टैप्स आदि की सुविधा भी रहेगी।
मंदिर का निर्माण पूर्णतया भारतीय परम्परानुसार व स्वदेशी तकनीक से किया जा रहा है। पर्यावरण-जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कुल 70 एकड़ क्षेत्र में 70% क्षेत्र सदा हरित रहेगा।
मंदिर के बारे में विशेष जानकारी
अयोध्या में रामलला के भव्य मंदिर का निर्माण हो क्या जा रहा है। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा भले ही 22 जनवरी को किया जा रहा है। लेकिन मंदिर के पूरी तरह से बनने में कम से कम एक साल का समय लगेगा। राम मंदिर का निर्माण 2.77 एकड़ में किया जा रहा है। मंदिर प्रांगण करीब 107 एकड़ में है। मंदिर की ऊंचाई 161 फीट है। जबकि मंदिर की चौड़ाई 235 फीट और लंबाई 360 फीट है। फर्स्ट फ्लोर में कुल 132 खंभे लगे है, जबकि ग्राउंड फ्लोर पर 160 खंभे लगे हैं। एक फ्लोर की लंबाई 20 फीट है। मंदिर में कुल तीन फ्लोर हैं।
मंदिर निर्माण का कार्य अक्टूबर, 2021 में शुरू हुआ। पत्थर लगाने का कार्य 2022 पूरा हो गया। 2023 में ग्राउंड फ्लोर का काम पूरा हो गया। 22 जनवरी, 2024 में रामलला के प्राणप्रतिष्ठा की जानी है।
रामलला का गर्भगृह
रामलला का गर्भगृह बेहद आकर्षक व भव्य बनाया जा रहा है। जिसकी लंबाई और चौड़ाई 20 फीट। गर्भगृह में एक साथ करीब 1000 श्रद्धालुओं के खड़े होने की सुविधा है। गर्भगृह के पास पारकोटा तीन तरफ खुलेगा। मंदिर के आसपास करीब तीन किमी क्षेत्रफल रेड जोन क्षेत्र कहलाएगा। यदि आप रेलवे से रामलला के दर्शन करने जा रहे हैं तो आप को ज्यादा भागना नहीं पड़ेगा क्योंकि अयोध्या धाम स्टेशन से मंदिर करीब 1.3 किमी है। जबकि महर्षि वाल्मीकि एयरपोर्ट की दूरी 10 किमी है।









