छोटी काशी के नाम से जाना जाता है बाबा का दूधेश्वर नाथ मंदिर,इस मंदिर का है प्राचीन रहस्य

य़ह मन्दिर 20 एकड़ के एरिया में स्थित हैं इस मंदिर का निर्माण राजा ने कराया था और वह स्वयं यहां पूजा किया करते थे।

छोटी काशी’ के नाम से मशहूर उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के रुद्रपुर स्थित बाबा दूधेश्वर नाथ का शिवलिंग महाकालेश्वर उज्जैन का उप ज्योतिर्लिंग भी माना जाता है। रुद्रपुर कस्बे और मंदिर का इतिहास सैंकड़ों साल पुराना है। यह स्थान दधिची और गर्ग ॠषियों की तपोस्थली भी मानी जाती है। सावन और अधिक मास में यह पूरा क्षेत्र ही शिवमय हो जाता है। देवरिया गजेटियर में भी इसका उल्लेख मिलता है कि चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपनी यात्रा में इस मन्दिर का वर्णन किया है।

स्वयंभू शिवलिंग के रूप में है बाबा दूधेश्वर नाथ
देवरिया जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर रुद्रपुर कस्बे को सतासी स्टेट के नाम से जाना जाता है। इस नगर को सतासी स्टेट के राजा वशिष्ठ सेन ने बसाया था। नगर के एक किनारे पर देवाधिदेव महादेव बाबा दूधेश्वर नाथ का मंदिर स्थित है। बताया जाता है कि य़ह मन्दिर 20 एकड़ के एरिया में स्थित हैं इस मंदिर का निर्माण राजा ने कराया था और वह स्वयं यहां पूजा किया करते थे।

धर्म ग्रंथों में दो तरह के शिवलिंग (वाणलिंग तथा चंड लिंग) माने गए हैं। बाबा दुग्धेश्वरनाथ अनादि स्वयं भू-चंडलिंग हैं नीसक पत्थर से बने यहां के शिवलिंग को महाकालेश्वर उज्जैन का उप ज्योर्तिलिंग माना जाता है।

दधीचि और गर्ग ऋषि की तपस्थली के रूप में है मान्यता
देवाधिदेव भगवान शिव के नाम से मशहूर पवित्र नगरी रुद्रपुर के समीप स्थित तमाम गांव भगवान शिव के नाम से बसे हैं। रुद्रपुर के आसपास के कई गांव भगवान शिव के नाम से जाने जाते हैं। जैसे- रुद्रपुर, गौरी, बैतालपुर, अधरंगी, धतुरा, बौड़ी गांव। सावन और अधिक मास में क्षेत्र शिवमय हो जाता है। भगवान शिव के महिमा से यह क्षेत्र प्रभावित रहा है। भक्त अपनी मनोकामना को लेकर बारह महीने यहां जलाभिषेक करते हैं लेकिन श्रावण मास में महाशिवरात्रि के दिन बड़ी संख्या में भक्त जलाभिषेक करने आते हैं।

दुग्धवेश्व नाथ मंदिर का रहस्य

किवदंती के अनुसार दूधेश्वर नाथ मंदिर ईसा पूर्व 332 का बताया जाता है जिसका निर्माण अयोध्या के राजा ब्रह्मा ने किया था,इसे नाथ बाबा का मंदिर भी कहा जाता है। प्राचीन काल में रुद्रपुर क्षेत्र एक जंगल में विद्यमान था और यह अवध क्षेत्र में आता था।बताया जाता है कि एक गाय एक नियत समय में एक निश्चित स्थान पर जाकर खड़ी हो जाती थी और दूध देने लगती थी अयोध्या के राजा को जब इस बात की जानकारी हुई तो वह सैनिकों के साथ वहां पहुंचे और उस स्थान की खुदाई की जिसके बाद उन्हें एक शिवलिंग दिखाई पड़ा शाम के समय काम बंद होने के बाद सैनिक अपने विश्राम स्थल में आराम करने लगे और राजा ने वहां एक पहरा लगा दिया सुबह जब राजा ने देखा कि वह शिवलिंग जितना ऊपर है उतना ही नीचे चला गया है।

बताया जाता है कि इस शिवलिंग का अंत आज तक भी नहीं पता चल पाया है और यह जमीन से कई फीट नीचे गर्भ में स्थित है आज भी मंदिर के कई स्थानों पर बौद्ध कला का निर्माण देखा जाता है चीनी यात्री फाह्यान का सबूत भी आज भी मंदिर के पीछे सीलापट्ट पर देखा जा सकता है वही इस मंदिर में कई पोखरे भी है साथ ही साथ एक किला भी है जो खंडहर में तब्दील हो गया है बताया जाता है कि दूधेश्वर नाथ मंदिर का सबूत पदम पुराण के 16 में असगंध में मिलता है और इसे उप ज्योतिर्लिंग की भी मान्यता दी गई है।

रिपोर्ट- मनीष कुमार मिश्र

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