मानसिक स्वास्थ्य को लेकर रहे ज्यादा जागरुक…क्योंकि भारत मानसिक स्वास्थ्य पर एक साहसिक कदम उठा रहा

और मदद मांगना कमज़ोरी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.अपने सरल, हृदयस्पर्शी भाषणों के साथ, वे एक ऐसे मुद्दे से निपटने में सफल रहे

दिल्ली- मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों को अब पहले से ज्यादा जागरुक किया जा रहा है.और लोगों से ये भी कहा जा रहा है कि वो मानसिक स्वास्थ्य का बेहद खास ध्यान रखें. इसे से जुड़ी बातें बताते चलें कि एक ऐसे देश में जहाँ मानसिक स्वास्थ्य को लंबे समय से नजरअंदाज किया जाता रहा है, एक शांत लेकिन गहरा बदलाव सामने आता दिख रहा है.जो बातचीत कभी वर्जित और शर्म से घिरी हुई थी, उसे अब देश के विकास के लिए महत्वपूर्ण स्तंभों के रूप में पहचाना जा रहा है. और इस पहल का नेतृत्व कुछ हद तक अप्रत्याशित रूप से अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं.

बता दें कि पीएम मोदी ही हैं जो इस परिवर्तनकारी मानसिक स्वास्थ्य आंदोलन की अगुआई कर रहे हैं, जिसने भारत को उन कुछ देशों में से एक बना दिया है जहाँ मानसिक स्वास्थ्य को मुख्यधारा के राष्ट्रीय विमर्श में जगह दी गई है. यह एक ऐसे समाज में कोई छोटी उपलब्धि नहीं है जहाँ मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को पारंपरिक रूप से श दबी हुई फुसफुसाहट के तौर पर देखा जा रहा है.

पर जो आँकड़े दिखाई दे रहे है.वो चिंताजनक हैं. युवा छात्रों और पेशेवरों के काम के तनाव और सामाजिक दबाव के आगे झुकने की सुर्खियाँ सुर्खियाँ बन रही हैं.हाल ही में हुई त्रासदियों, खासकर छात्रों और युवा कर्मचारियों के बीच, ने मानव मन की कमज़ोरी को और भी दर्दनाक रूप से उजागर कर दिया है.जहाँ सोशल मीडिया पर मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खूब प्रचार किया जा रहा है, वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने प्रगतिशील नीतियों और ठोस कार्रवाई के ज़रिए इससे निपटने का फ़ैसला किया है, जिससे वास्तविक दुनिया में हस्तक्षेप सभी भारतीयों के लिए सुलभ और किफ़ायती हो गया है.

इसे अलावा मानसिक स्वास्थ्य पर चुप्पी तोड़ने के लिए मोदी द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सबसे उल्लेखनीय मंचों में से एक उनका मन की बात रेडियो शो है.कोविड-19 महामारी के दौरान, पीएम मोदी ने अनिश्चितता, भय और दुख से जूझ रहे लाखों व्याकुल भारतीयों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में बात की. उनका संदेश सरल लेकिन शक्तिशाली था. मानसिक स्वास्थ्य भी शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्वपूर्ण है, और मदद मांगना कमज़ोरी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.अपने सरल, हृदयस्पर्शी भाषणों के साथ, वे एक ऐसे मुद्दे से निपटने में सफल रहे, जिससे विकसित देश भी अक्सर जूझते हैं. मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करना बहुत की नार्मल सी बात है.

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