भारत ने वेस्ट एशिया में कैसे साधा संतुलन – एक कूटनीतिक विश्लेषण

भारत की वेस्ट एशिया नीति पर एक विश्लेषण: कैसे तटस्थता को नैतिक समझदारी और रणनीतिक आत्मनिर्भरता के रूप में देखा जा रहा है, और क्यों यह संतुलन भारत के राष्ट्रीय हित में है।

जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इजरायल-ईरान संघर्ष में सीधी हस्तक्षेप की, तो दुनिया भर के देश दो पक्षों में बंट गए। लेकिन भारत – जो अब एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है – ने न तो इजरायल के पक्ष में झुकाव दिखाया और न ही ईरान की ओर कोई समर्थन जताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केवल इतना कहा – “तनाव कम हो, संवाद हो, और कूटनीति से समाधान निकले।”

बहुत से आलोचक, विशेषकर विपक्ष, इस तटस्थ रुख को एक तरह की ‘नैतिक कमजोरी’ बता रहे हैं। लेकिन क्या हर बार पक्ष चुनना ही नेतृत्व की निशानी होती है? क्या कभी-कभी चुप रहकर भी बुलंद आवाज़ नहीं उठाई जा सकती?

भारत की यह नीति कोई अचानक लिया गया फैसला नहीं है। यह उसी ‘गैर-संलग्न’ (Non-Alignment) नीति का विस्तार है, जो आज़ादी के बाद से भारत की कूटनीति का आधार रही है। शीत युद्ध के समय जब दुनिया अमेरिका और सोवियत संघ के बीच बंटी थी, तब भारत ने किसी एक खेमे में न जाकर रणनीतिक आत्मनिर्भरता का रास्ता चुना था। आज के बहुध्रुवीय विश्व में, यही नीति अधिक सार्थक और व्यवहारिक लगती है।

वेस्ट एशिया की वर्तमान स्थिति भी भारत के दृष्टिकोण को सही साबित करती है। ईरान के तथाकथित इस्लामी सहयोगी – जैसे सऊदी अरब, पाकिस्तान, जॉर्डन, सीरिया – सभी ने या तो चुप्पी साधी या अमेरिका-इजरायल की रणनीति में परोक्ष रूप से सहयोग दिया है।

लेबनान ने हिज़बुल्ला को रोक दिया, जॉर्डन ने ईरानी मिसाइलें इंटरसेप्ट कीं, सऊदी ने अमेरिकी हमलों के लिए खुफिया जानकारी और एयरस्पेस दिया, और पाकिस्तान ने तो ट्रंप को नोबेल प्राइज की सिफारिश तक कर डाली।

इन उदाहरणों से एक बात स्पष्ट होती है – कि वेस्ट एशिया में दोस्ती और दुश्मनी के परिभाषाएं तेजी से बदल रही हैं। इस भू-राजनीतिक अस्थिरता में, भारत का ‘न तटस्थता को कमजोरी मानना और न समर्थन को बहादुरी’ का नजरिया, कूटनीति का परिपक्व और दूरदर्शी रूप है।

भारत की तटस्थ नीति न तो नैतिक रूप से गलत है, न ही रणनीतिक रूप से कमजोर। यह एक विवेकपूर्ण और भविष्य-निर्धारित स्थिति है, जिसमें भारत अपनी आत्मनिर्भरता, संतुलन और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान को बनाए रखता है। और यही संतुलन उसे वेस्ट एशिया जैसे जटिल क्षेत्र में प्रभावशाली और विश्वसनीय साझेदार बनाता है।

Related Articles

Back to top button