
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस में आयोजित AI एक्शन समिट के दौरान यह बात कही थी कि “हम मानव ही अपनी साझा भविष्य और नियति की कुंजी रखते हैं। यही जिम्मेदारी हमें मार्गदर्शन देनी चाहिए।” जब प्रधानमंत्री यह बात कर रहे थे, तब भारत के महाकुंभ में लाखों लोग श्रद्धा भाव से स्नान कर रहे थे, जो स्वयं में एक प्रतीक है कि कैसे प्राचीन परंपराएँ और आध्यात्मिकता आज भी हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं।
आखिरकार, यह सवाल उठता है कि हम इस बदलाव को कैसे स्वीकार करें और आने वाले भविष्य में अपनी भूमिका को सही दिशा में कैसे बढ़ाएं? यदि हम भारत को दुनिया के सामने एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करें, तो यह प्राचीन ज्ञान के जरिए उभरती तकनीकियों का सामंजस्य दिखाने का समय है। हम दुनिया को एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के तकनीकी पहलू पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, उसे प्राचीन ज्ञान के दृष्टिकोण से जोड़कर दिखा सकते हैं।
प्राचीन ज्ञान और आधुनिक तकनीकी के बीच की खाई को भरना
आजकल की दुनिया में ध्यान (Attention) एक बहुत ही मूल्यवान संपत्ति बन चुकी है। सोशल मीडिया कंपनियाँ अपनी तकनीक का उपयोग करके इस ध्यान को भयंकर रूप से आकर्षित करती हैं और इससे भारी मुनाफा कमाती हैं। हालांकि, इस ध्यान को आकर्षित करने के साथ ही, समाज ने मानसिक स्वास्थ्य के संकट का भी सामना किया है। समाजशास्त्री जोनाथन हैडिट ने अपनी किताब “The Anxious Generation” में इस बात को उजागर किया है कि किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं असामान्य रूप से बढ़ी हैं।
अब हमें इस संकट का मुकाबला कैसे करना चाहिए? क्या हम बच्चों को सिर्फ स्मार्टफोन से दूर रख सकते हैं, या हमें उनके ध्यान को विकसित करने के साथ-साथ नए तकनीकी साधनों का उपयोग करना सिखाना चाहिए?
भारत के प्राचीन ज्ञान में इस ध्यान को “मानसिक ऊर्जा” के रूप में समझा गया था। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मिहाली चिकसेनटmihायली ने अपनी किताब “Flow” में यह बताया कि प्राचीन भारत में ध्यान को नियंत्रित करना और इसे सही दिशा में इस्तेमाल करना हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण था।
कैसे भारत इस ज्ञान का उपयोग कर सकता है?
यदि हम आधुनिक शिक्षा प्रणाली में प्राचीन ज्ञान को जोड़ें, तो हम बच्चों को मानसिक संतुलन और सामूहिकता में वृद्धि करने का अवसर दे सकते हैं। 12 वर्षों से अधिक समय से, मैं दुनियाभर के किशोरों को भारत में लेकर आया हूं, जहाँ वे स्मार्टफोन से दूर रहते हुए ध्यान और सामाजिक संबंधों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
हम भारत में “AWE” (Ancient Wisdom Engagement) के माध्यम से किशोरों को प्राचीन ज्ञान से जोड़ने की दिशा में काम कर सकते हैं। भारत को इस दिशा में एक वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में कदम उठाना चाहिए और बच्चों को इन प्राचीन विधियों से परिचित कराना चाहिए।
भारत को क्या करना चाहिए?
- प्राचीन ज्ञान आधारित पाठ्यक्रम का विकास: हमें ऐसे पाठ्यक्रम तैयार करने चाहिए जो बच्चों को प्राचीन भारतीय ज्ञान से जोड़ें। पश्चिमी देशों में माइंडफुलनेस पर आधारित कुछ पाठ्यक्रम होते हैं, लेकिन भारत को इसे एक संरचित पाठ्यक्रम के रूप में विकसित करना होगा।
- प्राचीन ज्ञान के केंद्र स्थापित करना: हम दुनिया भर के किशोरों के लिए भारत में ऐसे केंद्र बना सकते हैं, जहाँ वे एक सेमेस्टर बिताकर प्राचीन भारतीय ज्ञान का अनुभव कर सकें।
- G20 शिखर सम्मेलन में शिक्षा पर चर्चा: भारत को G20 देशों के साथ शिक्षा, तकनीकी और प्राचीन ज्ञान के संयोग पर चर्चा करने का अवसर प्रदान करना चाहिए। इसके द्वारा हम यह दिखा सकते हैं कि हम स्मार्टफोन को प्रतिबंधित करने की बजाय इसके साथ बेहतर मानसिक स्वास्थ्य और ध्यान विकास की दिशा में कैसे काम कर सकते हैं।
भारत के पास प्राचीन ज्ञान का एक समृद्ध खजाना है, जो आज के तकनीकी युग में अत्यधिक उपयोगी हो सकता है। इस ज्ञान का सही तरीके से प्रसार करके हम दुनिया के किशोरों को मानसिक संतुलन, ध्यान, और भविष्य की तकनीकी बुद्धिमत्ता के बीच संतुलन साधने में मदद कर सकते हैं।