FTII के सभी कोर्स में मिल सकेगा कलर ब्लाइंड लोगों को प्रवेश, भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान पुणे को सुप्रीम कोर्ट का बड़ा निर्देश…

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फ़िल्म निर्माण एक कला है। अगर कलर ब्लाइंडनेस के चलते किसी को कुछ समस्या आती है, तो वह दूसरे व्यक्ति से सहयोग ले सकता है। वर्णान्ध लोगों को पूरी तरह अयोग्य नहीं कहा जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान पुणे को निर्देश दिया की वह कलर ब्लाइंड (रंगों की पहचान में असमर्थ) लोगों को फ़िल्म निर्माण से जुड़े पाठ्यक्रम में हिस्सा लेने से नहीं रोकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संस्थान में प्रवेश पाने की कोशिश कर रहे कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित किसी व्यक्ति के साथ कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फिल्म निर्माण और संपादन, कला का एक रूप है अपने आप में एक संस्थान है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में अधिक समावेशी और प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि अन्य फिल्म और टेलीविजन संस्थानों को भी कलर ब्लाइंड छात्रों के लिए अपने दरवाजे खोलने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने पुणे के प्रतिष्ठित फ़िल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) को निर्देश दिया कि वह अपने सभी कोर्स कलर ब्लाइंडनेस वाले लोगों के लिए खोले।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फ़िल्म निर्माण एक कला है। अगर कलर ब्लाइंडनेस के चलते किसी को कुछ समस्या आती है, तो वह दूसरे व्यक्ति से सहयोग ले सकता है। वर्णान्ध लोगों को पूरी तरह अयोग्य नहीं कहा जा सकता। हालांकि, कोर्ट ने FTII को अनुमति दी है कि वह याचिकाकर्ता आशुतोष कुमार को दाखिला देने में अपनी आपत्ति पर हलफनामा दाखिल कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट में आशुतोष नके याचिका दाखिल कर कहा कि 2015 में फ़िल्म एडिटिंग कोर्स के लिए चुना गया था, लेकिन बाद में कलर ब्लाइंडनेस के चलते दाखिला नहीं दिया गया। याचिका मइन कहा कि FTII अपने 12 में से 6 पाठ्यक्रमों में कलर ब्लाइंड लोगों को प्रवेश नहीं देता, यह भेदभाव है। याचिका में हॉलीवुड के प्रख्यात निर्माता-निर्देशक क्रिस्टोफर नोलान का भी उदाहरण दिया। नोलान भी कलर ब्लाइंड हैं, लेकिन उन्होंने कई शानदार फिल्में बनाई थी।

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