
लखनऊ। भारतीय क्रिकेट टीम में अब कोई भी खिलाड़ी अछूत नहीं रह गया है। चाहे वो सीनियर हो या जूनियर, जो अच्छा खेलेगा वही प्लेइंग इलेवन में जगह बनाएगा। ऐसे में रवींद्र जडेजा जैसे अनुभवी खिलाड़ी भी दबाव में नजर आ रहे हैं। एजबेस्टन में खेले जा रहे दूसरे टेस्ट मुकाबले में जडेजा की बल्लेबाजी ने थोड़ी उम्मीदें जरूर जगाई हैं, लेकिन अगर वे यहां भी पूरी तरह फ्लॉप होते हैं तो उन्हें टीम से बाहर किया जाना तय माना जा रहा है।
लंबे समय से बल्ले से खामोश हैं जडेजा
जडेजा का आखिरी अर्धशतक ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ब्रिस्बेन टेस्ट में आया था, जहां उन्होंने 77 रन बनाए थे। इसके बाद से वे छोटी-छोटी पारियों में सिमटते आ रहे हैं। बल्ले से उनका योगदान लगातार गिरता जा रहा है, जिससे टीम में उनकी उपयोगिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
एजबेस्टन टेस्ट में दिखी उम्मीद की किरण
बर्मिंघम टेस्ट में जब टीम इंडिया को स्थिरता की जरूरत थी, जडेजा ने पहली पारी में 41 रन बनाकर नाबाद रहते हुए मोर्चा संभाला। अगर वे दूसरे दिन भी क्रीज पर टिकते हैं, तो कम से कम अर्धशतक तो तय है। मगर सवाल अर्धशतक का नहीं, बल्कि बड़ी पारी का है। भारत इस समय जिस स्थिति में है, वहां जडेजा से एक शतक की उम्मीद की जा रही है ताकि टीम को पहली पारी में 400 से ऊपर पहुंचाया जा सके।
गेंदबाजी में भी प्रदर्शन कमजोर
केवल बल्लेबाजी ही नहीं, गेंदबाजी में भी जडेजा का प्रदर्शन हालिया टेस्ट में खासा फीका रहा है। पहले टेस्ट मैच में उन्होंने पहली पारी में 68 रन खर्च कर एक भी विकेट नहीं लिया, जबकि दूसरी पारी में 104 रन देकर महज एक विकेट हासिल किया। बतौर ऑलराउंडर उनकी भूमिका दोहरी होती है, बल्ले से रन और गेंद से विकेट। लेकिन अगर दोनों ही विभागों में वह विफल रहे, तो चयनकर्ताओं के पास उन्हें ड्रॉप करने का ठोस कारण होगा।
आखिरी मौका साबित हो सकता है यह टेस्ट?
इस टेस्ट मैच को जडेजा के लिए ‘करो या मरो’ वाला मुकाबला माना जा रहा है। टीम इंडिया अब “फॉर्म के आधार पर चयन” की नीति पर चल रही है, जहां पुराने रिकॉर्ड से ज्यादा अहमियत मौजूदा प्रदर्शन को दी जा रही है। ऐसे में अगर जडेजा इस टेस्ट में बल्ले और गेंद दोनों से प्रभाव नहीं छोड़ते, तो आने वाले मैचों में उनकी जगह किसी युवा ऑलराउंडर को दी जा सकती है।









