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लोकसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश में जारी सियासी जंग पर जल्द ही विराम लगने वाला है। लोकसभा में जीत को लेकर होने वाला चुनाव अब अपने अंतिम फेज में पहुंच चुका है। इस बीच प्रदेश में सियासी पार्टियों के दिग्गज प्रत्याशियों के बीच मुकाबला भी तेज हो गया है। मगर इस जंग में कुछ दिग्गज ऐसे भी हैं जिनका नाम पूरे चुनाव भर चर्चाओं में रहा है। इन दिग्गजों के बदलते राजनीतिक रुख के कारण अपनी जीत का दावा कर रही पार्टियां भी मुसीबत में आ गए हैं। इसके पीछे का कारण है प्रतापगढ़ और जौनपुर की दो लोकसभा सीट। जिसको लेकर चाहें सपा हो या भाजपा दोनों ही जोर आजमाइश पर लगे हुए हैं। इन सीटों पर 25 मई को मतदान होना है। मगर इन सीटों पर दो दिग्गज नेताओं का कब्ज़ा और उनके समर्थन को लेकर पेंच अभी तक फंसा हुआ है। तो चलिए दिखाते हैं आपको आखिर क्यों इन सीटों पर मारा मारी के बीच इन दोनों दिग्गजों पर सबकी नजर है और इनके समर्थन देने और न देने से किसको फायदा और किसको नुकसान हो सकता है।
दरअसल, इन दोनों ही सीटों पर ‘ठाकुर राजनीति’ काफी अहम मानी जाती रही है। कारण हैं प्रतापगढ़ से बाहुबली राजा भैया और जौनपुर से धनंजय सिंह का दबदबा। इन दोनों ही नेताओं का ठाकुर समाज पर खासा प्रभाव मन जाता है ऐसे में एक तरफ भाजपा है जिससे उसके कोर वोटर कहे जाने वाले क्षत्रिय समाज नाराज चल रहे हैं तो दूसरी तरफ है सपा जिसने इस पूरे चुनाव में भले ही PDA यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यंक पर अपना फोकस किया मगर अंदरखाने में वो भी जानती है की ऐसे मौके पर अगर उसको ठाकुरों का साथ मिल जाए तो सोने पर सुहागा हो सकता है। वहीं सियासी जानकारों का मानना है कि ठाकुर समाज में बीजेपी के लिए बढ़ती खट्टास के बीच अगर उनका समर्थन सपा को मिल गया तो ये चुनाव भी काफी दिलचस्प हो सकता है। चलिए समझते हैं कैसे ?
20 मई को हुए पांचवें चरण के मतदान से पहले, कुंडा विधायक और जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के प्रमुख रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया द्वारा अपना समर्थन न्यूट्रल बनाए रखने के ऐलान से राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में हलचल तेज हो गई है। उन्होंने अपने समर्थकों को उचित समझ कर मतदान करने की सलाह दी है। जी हां, राजा भैया ने किसी भी उम्मीदवार का समर्थन करने से साफ़ इंकार किया है। हालांकि कुछ दिन पहले ही बेंगलुरु में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ उनकी बैठक भी हुई थी। इसके बाद से ही अटकलें लगाई जा रही थीं कि अब राजा भैया भारतीय जनता पार्टी को समर्थन दे सकते हैं, मगर ऐसा हुआ नहीं।
पूर्वांचल के प्रमुख ठाकुर नेताओं में राजा भैया क्यों हैं ख़ास ?
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सियासी जानकारों की अगर मानें तो भले ही जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) ने लोकसभा चुनाव में कोई उम्मीदवार नहीं उतारा हो, फिर भी रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया का प्रभाव, विशेष रूप से प्रतापगढ़ में, जहां 25 मई को मतदान होगा, बेहद अहम है। राजा भैया को पूर्वांचल के प्रमुख ठाकुर नेताओं में से एक में गिना जाता है। जो वर्ष 1993 से लगातार कुंडा सीट से विधायक चुने जा रहे हैं। उनकी यही जीत उनके गहरे प्रभाव और क्षेत्र में उनके प्रभुत्व को समझने के लिए बहुत है। ऐसे में इस चुनाव में राजनीतिक दल को उनके समर्थकों पर विचार करने के पर मजबूर होना लाजमी है।
जौनपुर में धनंजय सिंह का रुतबा भी कुछ यही बताता है : –
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अब आते हैं दूसरे सीट और उसपर छिड़ी जंग के बीच चर्चा में आए पूर्व सांसद और बाहुबली नेता धनंजय सिंह की। बता दें जिले के दोनों लोकसभा क्षेत्रों के मतदाताओं में पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पैठ है। इसका उदाहरण है जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव। निर्दलीय प्रत्याशी होते हुए भी धनंजय ने सभी दलों के जिला पंचायत सदस्यों को तोड़कर अपने पक्ष में करने के साथ ही पत्नी श्रीकला सिंह को अध्यक्ष बना दिया था। जौनपुर लोकसभा क्षेत्र की स्थिति देखें तो यहां अनुसूचित जाति, यादव, मुसलमान, ब्राह्मण, मौर्य व क्षत्रिय मतदाताओं की अच्छी खासी तादाद है। एक अनुमान के मुताबिक यहां अनुसूचित जाति व यादव मतदाताओं की संख्या ढाई लाख के आसपास तो मौर्य मतदाताओं की तादाद भी डेढ़ लाख के आसपास है।
अब अगर सियासी जानकारों के नजरों से देखा जाए तो इन दोनों दिग्गजों की जरुरत इस समय भाजपा को सबसे ज्यादा है अगर वो अपने 400 पार वाले नारे को सच करके दिखाना चाहती है तो। मगर इन दोनों नेताओं के चुनावी रुख अलग है। जहां धनंजय हाल ही में बीजेपी के समर्थन का ऐलान कर चुके हैं तो वहीं राजा भैया ने पिछले चरण में मतदान के दौरान न्यूट्रल मोड दिखाया था। जिसके बाद अब यूपी के सियासी जगत में एक ही सवाल गूँज रहा है BJP को धनंजय का साथ और राजा भैया से रार में फायदा होगा या नुकसान ? ये देखना दिलचस्प होगा।