रायबरेली : मौत के साए में जीने को मजबूर सरकारी कर्मचारी, 47 साल पुराने जीर्णशीर्ण हो चुके आवासों में काट रहे जीवन!

लोक निर्माण विभाग से बगैर जानकारी लिए जिलाधिकारी के कार्यालय से इन मकानों को रहने के लिए अधिकारियों और कर्मचारियों को एलाट किया जाता है. इसी को लेकर लोक निर्माण विभाग के अधिकारी परेशान हैं कि अगर अधिकारियों के साथ ही कर्मचारियों के घरों से किसी प्रकार के जानमाल का नुकसान होता है तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा?

(रिपोर्ट – रोहित मिश्र)

रायबरेली शहर के राजकीय कालोनी के 47 साल पुराने आवासों में रहने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों की जान खतरे में है. साल 1975 में रायबरेली जिले में सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के रहने के लिए शहर के गोरा बाजार के पास नजूल की जमीन पर राजकीय कालोनी का निर्माण कराया गया था. राजकीय कालोनी के सरकारी आवास जीर्णशीर्ण होने के अलावा निष्प्रयोज्य भी घोषित किए जा चुके हैं.

इसके बावजूद सरकारी अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक इस कालोनी के जर्जर आवासों का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं. यही कारण है कि जिलाधिकारी को गुमराह करके लोग अपने नाम इन जर्जर और जीर्ण शीर्ण आवासों के साथ ही कन्डम हो चुके आवासों को भी एलाट करा रहे हैं. इन कालोनियों की स्थिति यह है कि कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है, सरकारी फंड के अभाव में इनके मरम्मत का कार्य भी नहीं हो पा रहा है.

राजकीय कालोनी का निर्माण 1975 में किया गया था. तब मकानों की छत की ढलाई ईंट से की जाती थी. अब नए समय में मकानों के छत की ढलाई गिट्टी से की जा रही है. 47 साल पुराने हो गए इन मकानों में किसी की छत से प्लास्टर उखड़ रही है तो किसी की दीवारों से प्लास्टर उखड़ रहा है. कई भवनों में तो छज्जा ही टूटकर गिर गया है.

लोक निर्माण विभाग से बगैर जानकारी लिए जिलाधिकारी के कार्यालय से इन मकानों को रहने के लिए अधिकारियों और कर्मचारियों को एलाट किया जाता है. इसी को लेकर लोक निर्माण विभाग के अधिकारी परेशान हैं कि अगर अधिकारियों के साथ ही कर्मचारियों के घरों से किसी प्रकार के जानमाल का नुकसान होता है तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा?

सरकारी कालोनी के आवास में रहने का मोह इसलिए है क्योंकि इसका किराया नाम मात्र का होता है. इसके अलावा अगर भवन में किसी प्रकार की टूट फूट होती है तो उसके मरम्मत की जिम्मेदारी लोक निर्माण विभाग के सिर पर होती है.

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