
संविधान निर्माता और सामाजिक न्याय के अग्रदूत के रूप में डॉ. भीमराव अंबेडकर का नाम सभी जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोग उनकी आर्थिक सोच और योगदान को पहचानते हैं। केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने अपने लेख में डॉ. अंबेडकर को भारत के पहले और सबसे दूरदर्शी अर्थशास्त्रियों में से एक बताया है।
डॉ. अंबेडकर ने उस दौर में भारत की मौद्रिक नीतियों पर शोध किया, जब देश के पास न तो खुद का केंद्रीय बैंक था और न ही स्थिर मुद्रा प्रणाली। 22 वर्ष की उम्र में जब वह कोलंबिया यूनिवर्सिटी, न्यूयॉर्क पहुंचे, तब उन्होंने ‘Ancient Indian Commerce’ पर एमए की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद ‘The National Dividend of India’ नामक शोध कार्य के माध्यम से पीएचडी प्राप्त की। उनकी थीसिस ‘The Problem of the Rupee: Its Origin and Its Solution’ ने भारत के मौद्रिक भविष्य की नींव रखी।
अंबेडकर ने स्पष्ट किया कि कैसे ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीय रुपया और पाउंड के बीच के संबंध को कृत्रिम रूप से नियंत्रित किया गया, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ा। उन्होंने भारत के लिए ‘गोल्ड एक्सचेंज स्टैंडर्ड’ को अपनाने की सलाह दी, जो उस समय विकसित देशों में प्रचलित एक स्थिर प्रणाली थी।
1925 में, उनके इस आर्थिक दृष्टिकोण को मान्यता मिली जब उन्हें हिल्टन यंग कमीशन के सामने अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किया गया। यह वही कमीशन था जिसकी सिफारिशों पर 1934 में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की स्थापना हुई। कहा जाता है कि RBI अधिनियम 1934 की रूपरेखा में अंबेडकर की थीसिस का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
डॉ. अंबेडकर का मानना था कि जब तक आर्थिक न्याय नहीं मिलेगा, तब तक सामाजिक न्याय अधूरा रहेगा। उनका मानना था कि मुद्रा और उसका प्रबंधन केवल तकनीकी विषय नहीं है, बल्कि यह गरीबों के अधिकार, गरिमा और अवसर से जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि उन्होंने श्रम नीति, जल संसाधन प्रबंधन, बिजली और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए कई ऐतिहासिक कदम उठाए।
उन्होंने श्रमिकों के लिए मातृत्व लाभ, सीमित कार्य घंटे, विवाद समाधान बोर्ड जैसे प्रावधान लागू किए। साथ ही उन्होंने रोजगार विनिमय कार्यालयों की स्थापना, जल प्रबंधन के लिए सेंट्रल वॉटर कमीशन और तकनीकी पावर बोर्ड जैसे संस्थानों की भी नींव रखी। आज जब भारत डिजिटल मुद्रा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित वित्तीय प्रणाली और विकेंद्रीकृत फाइनेंस की ओर बढ़ रहा है, तब बाबासाहेब की पारदर्शिता, जवाबदेही और सामाजिक कल्याण पर आधारित सोच पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत अब तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में अग्रसर है। इस ऐतिहासिक मोड़ पर, बाबासाहेब अंबेडकर की आर्थिक दूरदर्शिता को अपनाना ही भारत के उज्जवल और समावेशी भविष्य की सबसे मजबूत बुनियाद है।









