यूपी विधानसभा चुनाव के बाद विधान परिषद चुनाव का बिगुल बज चूका है। मुस्लिम-यादव समीकरण को लेकर बैकफुट पर जाने की कोशिश करने वाली समाजवादी पार्टी ने विधान परिषद चुनाव में दोबारा अपने मुस्लिम यादव समीकरण को भुनाने में जुट गई है। विधान परिषद की स्थानीय प्राधिकारी चुनाव के मद्देनजर सपा ने 35 सीटों पर आधे से ज्यादा यादव वर्ग के उम्मीदवारों को टिकट दिया है। जबकि गैर यादव बिरादरी को अपेक्षाकृत कम अनुपात में प्रतिनिधित्व मिला है।
सपा की सियासी समीकरण का आधार हमेशा ही मुस्लिम-यादव फैक्टर रहा है। हालांकि विधानसभा चुनाव में सपा इस फॉर्मूले को लेकर बैकफुट पर नजर आ रही थी और शायद यही वजह है कि विधानसभा चुनाव में भी टिकट वितरण में सपा ने MY फैक्टर के इतर गैर यादव पिछड़ी जातियों को खासा तवज्जो दी थी। दरअसल, सपा की यह रणनीति एक बड़े जनसमूह को अपने पाले में करने की कोशिश थी। चूंकि यह चुनाव अप्रत्यक्ष लोकतान्त्रिक प्रणाली के आधार पर होना है लिहाजा सपा की रणनीति भी बदली हुई नजर आती है।
विधान परिषद के चुनाव में सपा ने अपनी रणनीति बदलते हुए उन्हीं लोगों को मैदान में उतरा है जिनका क्षेत्र में खासा दबदबा है और पार्टी के पक्ष में वोटो का इजाफा करा सकते हैं। अगर पिछले विधान परिषद चुनाव पर नजर डाले तो सपा ने 36 सीटें जीती थी जिसमें अधिकांश प्रत्याशी यादव बिरादरी से ही थे। इस बार के एमएलसी चुनाव में एक खास बात यह भी देखने को मिली है कि सपा ने सूची जारी करते समय यादव बिरादरी के प्रत्याशियों के नाम में यादव उपनाम लगाने से परहेज किया है। इस बार एमएलसी के चुनावी मैदान में सपा की तरफ से एक महिला उम्मीदवार को भी उतारा गया है।
चूंकि परिस्थितियां इस बार बदल चुकी हैं और सपा सत्ता से बाहर है। ऐसे में यह देखना है कि समाजवादी पार्टी का यह सियासी समीकरण चुनावी बिसात में कितना कमाल दिखा सकता है।