बंदरों के आतंक से दहशत में ग्रामीण, DM, पुलिस समेत वन विभाग तक गुहार, भगाने के लिए न बजट, न प्रशिक्षित कर्मचारी

पिछले 2 महीने में इन बंदरों के आतंक से एक मासूम बच्चे समेत तीन लोगों की मौत भी हो चुकी है, इसके अलावा दर्जनों मवेशियों को भी बंदरों ने बुरी तरह जख्मी किया है, ग्रामीणों की इन बंदरों के आतंक से जान पर बन आई है

यूपी के बांदा में बंदरों का आतंक ग्रामीणों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है, यहां एक गांव में आदमखोर बंदर ग्रामीणों के लिए बेहद खतरनाक हो चुके हैं। पिछले 2 महीने में इन बंदरों के आतंक से एक मासूम बच्चे समेत तीन लोगों की मौत भी हो चुकी है, इसके अलावा दर्जनों मवेशियों को भी बंदरों ने बुरी तरह जख्मी किया है, ग्रामीणों की इन बंदरों के आतंक से जान पर बन आई है लेकिन प्रशासनिक तौर पर इन ग्रामीणों का कोई पुरसाहाल नहीं है वन विभाग के अधिकारी बजट ना होने और बंदरों को आस्था का मामला होने की बात कह कर अपना पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं।

बांदा जिले के तिंदवारी थाना क्षेत्र के गांव छापर में बंदरों का यह आतंक देखने को मिल रहा है। जहां पिछले कुछ महीनों से सैकड़ों बंदरों ने कहर ढाया हुआ है। एक महिला समेत एक बुजुर्ग को इन्हीं बंदरों के आतंक से अपनी जान से हाथ धोए कुछ दिन ही बीते थे कि बीते दिन एक 2 साल के बच्चे को भी इन बंदरों ने अपना शिकार बना लिया और बच्चे की मौत हो गई। बच्चे के परिजनों के मुताबिक 2 साल का मासूम अपने पालने में खेल रहा था और बच्चे की मां घर के दूसरे हिस्से में अपने काम में व्यस्त थी इसी दौरान एक बंदर उस बच्चे को उठा ले गया और उसे ऊंचाई से फेंक दिया जिससे बच्चा बुरी तरह घायल हो गया और बच्चे की मौत हो गई। इस घटना के बाद गांव में दहशत का आलम है, बंदर इससे पहले भी आधा दर्जन ग्रामीणों पर हमला कर उन्हें घायल कर चुके हैं और पूरे गांव के छप्पर तक इन बंदरों के आतंक से बर्बाद हो चुके हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि बंदरों के चलते उन्हें रात दिन लाठी हाथ में लेकर रहना पड़ रहा है। वहीं ग्राम प्रधान पुलिस विभाग से लेकर वन विभाग तक और जिलाधिकारी से लेकर तहसील प्रशासन तक को प्रार्थना पत्र देकर बंदरों के आतंक से मुक्ति दिलाने की फरियाद कर चुके हैं लेकिन इनकी भी सुनने वाला कोई नहीं है। वहीं इस मामले में वन विभाग पर भी ग्रामीण सवालिया निशान लगा रहे हैं, ग्रामीणों का कहना है कि पुलिस के पास जाओ तो उनका कहना है कि वन विभाग का काम है बंदर पकड़ना और वन विभाग के अधिकारियों के पास इन आतंकी बंदरों को संभालने का कोई इंतजाम ही नहीं है।

वहीं इस मामले में डीएफओ संजय अग्रवाल बंदरों को पकड़ने के मामले में शासन से बजट का ना मिलना बताने से नहीं चूकते हैं। डीएफओ संजय अग्रवाल का कहना है कि ये सच है कि बंदरों के फेंकने से एक बच्चे की मौत हुई है लेकिन उनके विभाग की तरफ से बजट ना होने के बावजूद मानवीय दृष्टिकोण से बंदरों को भगाया गया है लेकिन वह बंदर दोबारा फिर आ जाते हैं। डीएफओ का कहना है कि गांव वालों को सावधान रहने और खाने पीने की चीजें बाहर ना रखने के लिए एडवाइजरी भी जारी की गई।

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