
नई दिल्ली,: भारत का वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा में योगदान पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है, खासकर जब स्वास्थ्य देखभाल की लागतें बढ़ रही हैं, जो दुनिया भर में घरों, सरकारों, बीमाकर्ताओं और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं पर भारी दबाव बना रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 2022 में वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल खर्च $9.8 ट्रिलियन तक पहुंच गया, जो वैश्विक GDP का लगभग 10% था।
दवाओं की बढ़ती लागत और स्वास्थ्य असमानताएँ
दवाओं की बढ़ती लागत केवल वित्तीय बोझ नहीं बन रही है, बल्कि यह स्वास्थ्य देखभाल की पहुंच में असमानताओं को भी बढ़ा रही है, विशेषकर विकासशील देशों में जहां जीवन रक्षक उपचार कई लोगों के लिए सुलभ नहीं हैं।
भारत का अनिवार्य योगदान
वैश्विक फार्मा खर्च 5-8% की CAGR (सालाना संयुक्त वृद्धि दर) से बढ़ने की उम्मीद है और 2028 तक यह $2.3 ट्रिलियन तक पहुंच सकता है। 2023 में वैश्विक बायोफार्मास्युटिकल खर्च $1.4 ट्रिलियन था। WHO का अनुमान है कि वैश्विक जनसंख्या का एक तिहाई आवश्यक दवाओं तक पहुंच से वंचित है, जिसके कारण हर साल लाखों बचने योग्य मौतें होती हैं। यदि भारत की जेनेरिक दवाएं और बायोसिमिलर दवाएं उपलब्ध न होतीं, तो यह संकट कहीं अधिक गंभीर होता।
भारत की जेनेरिक दवाओं की बढ़ती मांग
2023 में वैश्विक जेनेरिक दवाओं का बाजार $420 बिलियन का था और यह 2030 तक $600 बिलियन को पार कर जाएगा। भारत दुनिया की 20% जेनेरिक दवाएं आपूर्ति करता है और यह सस्ती स्वास्थ्य देखभाल समाधान प्रदान करने में अग्रणी है। भारत की योगदान ने विकासशील और विकसित देशों दोनों में स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में परिवर्तनकारी बदलाव लाया है।
अमेरिका और ब्रिटेन में भारत का योगदान
भारत अमेरिका की 40% जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति करता है और ब्रिटेन की 25% जरूरतों को पूरा करता है। अमेरिका में, जहां स्वास्थ्य देखभाल की लागतें सबसे अधिक हैं, जेनेरिक और बायोसिमिलर दवाएं आवश्यक उपचारों तक पहुंच का विस्तार कर रही हैं। 2023 में, जबकि अमेरिका में 90% प्रिस्क्रिप्शन जेनेरिक और बायोसिमिलर थे, ये कुल दवा खर्च का केवल 18% थे, जिससे यह साबित होता है कि ये दवाएं न केवल उपचारों तक पहुंच बढ़ा रही हैं, बल्कि लागतों को भी कम कर रही हैं।
भारत की फार्मा क्षमता
भारत का फार्मा क्षेत्र विश्व स्तरीय वैज्ञानिक समुदाय, अत्याधुनिक निर्माण क्षमताओं और लागत प्रभावी उत्पादन विधियों में निहित है। भारत दवाओं का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और 200 से अधिक देशों को दवाएं निर्यात करता है।
भारत की बायोसिमिलर दवाओं में अग्रणी भूमिका
भारत ने बायोसिमिलर दवाओं के क्षेत्र में भी नेतृत्व किया है, जो बायोलॉजिक दवाओं का सस्ता विकल्प होते हैं और कैंसर और ऑटोइम्यून रोगों जैसे जटिल रोगों का इलाज करते हैं। बायोसिमिलर बाजार 2030 तक चार गुना बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि मूल बायोलॉजिक दवाओं के पेटेंट समाप्त हो रहे हैं। भारत की फार्मा कंपनियां इन महत्वपूर्ण उपचारों के विकास में प्रमुख भूमिका निभा रही हैं, जिससे दुनियाभर के लाखों मरीजों को जीवन रक्षक उपचार मिल रहे हैं।
भारत की नवाचार क्षमता और भविष्य की दिशा
भारत की आर एंड डी में विशेषज्ञता, विशेष रूप से रसायन विज्ञान और जैव रसायन के क्षेत्र में, इसे पहली बार-की-प्रकार की नई उपचारों, जिनमें जीन- और सेल-आधारित उपचार शामिल हैं, को सस्ते में विकसित करने के लिए एक लागत प्रभावी नवप्रवर्तनक के रूप में स्थापित करती है।
वैक्सीनेशन में भारत की नेतृत्व भूमिका
भारत ‘दुनिया की वैक्सीनेशन राजधानी’ के रूप में जाना जाता है और दुनिया की 60% से अधिक वैक्सीनेशन का उत्पादन करता है। पोलियो, मीजल्स और कोविड जैसी संक्रामक बीमारियों से निपटने के लिए भारत की वैक्सीनेशन प्रक्रिया महत्वपूर्ण रही है।
निष्कर्ष
भारत का वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा में योगदान केवल दवाओं के निर्माण तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों से निपटने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत के फार्मा क्षेत्र का नेतृत्व वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा में स्थिरता और समानता को सुनिश्चित करने में मदद कर रहा है, और इसके निरंतर नवाचार और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से दुनिया भर में स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी।