पोलिंग पार्टियों की रवानगी के साथ लोकतंत्र का महापर्व के शुरुआत की रणभेरी बज चुकी है। पश्चिमी यूपी को साधने की कवायद में जुटे सभी राजनैतिक दलों की धड़कने बढ़ी हुई हैं कि आखिर मतदाता का साथ किसे हांसिल होगा? क्या वेस्ट यूपी के कैराना में जनता के जमीनी मुद्दों से इतर पलायन का मुद्दा सामान्य मतदाता पर असर डालेगा या किसान पहले से ही बदलाव की सोच के साथ मतदान करेंगे? यह एक ज्वलंत प्रश्न है।
पश्चिमी यूपी के कैराना सीट का राजनैतिक इतिहास दशकों तक भाजपा के पक्ष में रहा है। इस विधानसभा सीट से भाजपा के पूर्व सांसद और पूर्व मंत्री स्वर्गीय बाबू हुकुम सिंह लगातार सात बार विधायक रहे और साल 2014 के केंद्रीय चुनाव में कैराना से ही भाजपा के सांसद चुने गए थे। बाबू हुकुम सिंह ने साल 1974 में कांग्रेस के टिकट पर कैराना से चुनाव लड़ा और पहली बार विधानसभा पहुंचे। इसके बाद वो लगातार 1980, 1985, 1996, 2002, 2007 और 2012 में भाजपा के विधायक के तौर पर राजनीती में एक नया आयाम स्थापित किया था।
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में पलायन का मुद्दा उठाने वाले बाबू हुकुम सिंह के इसी विधानसभा सीट से भाजपा ने दिवंगत राजनेता की बेटी मृगांका सिंह को टिकट दिया है। भाजपा की मृगांका का मुकाबला गठबंधन के नाहिद हसन, कांग्रेस के हाजी अखलाक और बसपा के राजेंद्र सिंह उपाध्याय से है। पश्चिमी यूपी के जिले शामली की कैराना विधानसभा सीट से कुल 10 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। 10 फरवरी को होने वाली पहले चरण की वोटिंग में मुख्य मुकाबला बीजेपी और गठबंधन के बीच ही माना जा रहा है।
वहीं अगर वोटों की गणित की बात करें तो कैराना सीट मुस्लिम और जाट बाहुल्य इलाके वाली सीट है जहां लगभग 1 लाख 37000 मुस्लिम वोटर हैं तो वहीं जाट वोटर्स की संख्या लगभग 25000 है। अब देखने वाली बात यह होगी की मुस्लिम-जाट फैक्टर किसके पक्ष में हावी होता है?