
विश्व आर्थिक मंच के सामने एक चुनौती है. चाहें वो जानकारी की उपलब्धता में सुगमता हो या लाइव स्ट्रीमिंग देखने और मल्टीटास्क को और अधिक आरामदायक बनाना, जलवायु परिवर्तन के कारण दावोस में कुछ जगहों या विशेष रूप से ढलानों पर कम बर्फ एक ऐसे युद्ध की तरह प्रतीत होता है जिसका कोई अंत नहीं है. विश्व आर्थिक मंच जैसे बड़े वैश्विक घटनाक्रम के रंग को ये सब घटनाक्रम फीका बना देते हैं. शायद यही वजह है कि पहली बार, WEF23 की बैठक में एकमात्र G7 नेता जर्मन चांसलर मौजूद रहे.
अडानी समूह के चेयरपर्सन गौतम अडानी दावोस में हैं. विश्व आर्थिक मंच की बैठक के बाद वो दावोस के रेस्टॉरेंट पहुंचें. जहां उन्होंने अपने सहयोगियों आशीष राजवंशी, सुदीप्ता भट्टाचार्या और जीत अडानी के साथ समसामयिक मुद्दों पर चर्चा की. इस दौरान उन्होंने कहा कि इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि दावोस अभी भी एक प्रमुख व्यवसाय नेटवर्किंग सम्मेलन में एक बड़ा आकर्षण का केंद्र रहा है और तेजी से रूपांतरित हो रहा है.
उन्होंने कहा कि किसने कल्पना की होगी कि इतने कम समय में दुनिया इतनी तेजी से बदल जाएगी और हम दावोस 2019 में ‘वैश्वीकरण 4.0’ पर चर्चा करने से हट कर दावोस 2023 में ‘एक खंडित दुनिया में सहयोग’ के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए इकट्ठे हो जाएंगे. उन्होंने कहा कि WEF23 के लिए नियम फिर से लिखे गए लेकिन इस बार ये सब पूरी तरह से अप्रत्याशित था. बहुआयामी जोखिमों का यह हमला अभूतपूर्व है, और उनका संगम एक बड़ा जटिल प्रभाव या ‘पॉलीक्राइसिस’ बनाता है.पॉलीक्राइसिस 1990 के दशक में गढ़ा गया एक शब्द था और इस वर्ष के लिए विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक जोखिम रिपोर्ट में व्यापक रूप से इसे शामिल किया गया है.
गौतम अडानी ने कहा कि WEF’23 में जाने पर, मैं “अचूक” तकनीकी उद्योग और 2023 की तीसरी तिमाही में वैश्विक मंदी के बारे में अर्थशास्त्रियों की चेतावनियों द्वारा बड़े पैमाने पर छंटनी के बारे में पढ़कर हैरान था. इन दिनों, अर्थशास्त्रियों की भविष्यवाणियों की गुणवत्ता उतनी ही अच्छी है जितना मेरी स्कीइंग स्किल, दोनों फिसलन भरी ढलान पर हैं.
उन्होंने कहा कि मौजूदा भू-आर्थिक विखंडन और आर्थिक नीतियों के शस्त्रीकरण के अलावा, चीन और अमेरिका के अलगाव को हम ग्रेट फ्रैक्चर के रूप में देख रहे हैं जिसके बड़े पैमाने पर वैश्विक परिणाम देखने को मिलते हैं. इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था गंभीर रूप से कमजोर होती नजर आ रही हैं.
“ग्रेट फ्रैक्चर” (अमेरिका चीन अलगाव) का परिणाम ये होगा कि पारंपरिक व्यापार पैटर्न बदल जाएगा क्योंकि पश्चिमी दुनिया के हिस्से रूस और चीन दोनों पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहे हैं. इसके साथ ही भारत और दूसरे आसियान देशों के लिए आपूर्ति श्रृंखला जोखिमों के विविधीकरण से लाभान्वित होने का एक अवसर बन जाती है, जिसकी उम्मीद की जा सकती है.
बातचीत के दौरान अडानी समूह के चेयरपर्सन ने कहा कि बैठकों के दृष्टिकोण से, यह शायद मेरा सबसे व्यस्त WEF था क्योंकि मैं एक दर्जन से अधिक राष्ट्राध्यक्षों और कई व्यापारिक नेताओं से मिला था. इस सहूलियत की दृष्टि से, मुझे काफी कुछ देखने का अवसर मिला.
उन्होंने कहा कि वैश्विक गठजोड़ अब निष्ठा-आधारित होने के बजाय मुद्दे-आधारित हो गए हैं. सऊदी अरब के वित्त मंत्री द्वारा की गई एक बहुत ही दिलचस्प टिप्पणी जिसने चीन और अमेरिका दोनों को ‘बहुत महत्वपूर्ण’ का दर्जा दिया है, इस बात पर प्रकाश डालता है कि भू-राजनीतिक जुड़ाव कितनी तेजी से विकसित हो रहा है.
अतीत अब भविष्य के लिए भविष्यवक्ता नहीं है, क्योंकि कोई भी देश सिर्फ एक शर्त नहीं लगाना चाहता. प्रत्येक देश अपनी स्वयं के स्वावलंबन की मांग कर रहा है, जिसे हम भारतीय आत्मानिर्भरता कहते हैं. इस संदर्भ में, मुझे यह कहना चाहिए कि निओम और सऊदी अरब के वरिष्ठ नेताओं के साथ हुई बैठकों में, निओम का दृष्टिकोण जिसका उद्देश्य “जीवित रहने” को फिर से परिभाषित करना है, इसके पैमाने और दायरे खुद में आश्चर्यजनक है और यही दृष्टिकोण आने वाले समय में दुनिया के लिए एक अभूतपूर्व बेंचमार्क सेट करेगा.
गौतम अडानी ने दूसरे बिंदू में कहा कि हालिया दौर में जब जलवायु परिवर्तन वैश्विक समुदाय के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता और जोखिम बना हुआ है, यह स्पष्ट है कि जलवायु निवेश ऊर्जा सुरक्षा एजेंडा और स्व-हित द्वारा संचालित होगा. इस वर्ष यह स्पष्ट था कि यूरोपीय ऊर्जा संकट ने केवल हरित ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करने के बहाने को भी समाप्त कर दिया. हालांकि जलवायु योद्धा चुप्पी साधे रह सकते हैं. यह भी माना जाता है कि समावेशी विकास हासिल करने के लिए हमें एक व्यावहारिक ऊर्जा परिवर्तन योजना की आवश्यकता है जिसमें जीवाश्म ईंधन शामिल हो.
यूएस इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट ने यूरोप को प्रौद्योगिकी, धन और विशेषज्ञता के आउटबाउंड माइग्रेशन को रोकने के लिए अपना ग्रीन पैकेज विकसित करने के लिए प्रेरित किया है. मेरी चर्चाओं ने यह स्पष्ट किया कि यूरोप की प्रतिक्रियावादी चाल वैश्विक हरित परिवर्तन को चलाने की इच्छा से अधिक अपनी ऊर्जा सुरक्षा और अपने उद्योगों की सुरक्षा के लिए चिंता से प्रेरित है. कई मायनों में, अमेरिका और यूरोप के बीच विभाजन अधिक स्पष्ट नहीं हो सकता है क्योंकि दोनों अभी भी संरेखण का दावा करते हुए अपने स्वयं के राष्ट्रीय एजेंडे का पालन करते हैं और मेरी नजर में ऐसा करने में कोई बुराई नहीं है.









