”बड़े बेटे का बड़ा बेटा राजा बने, लोकतंत्र में जरूरी नहीं”…शाही परिवार को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

कोर्ट ने यह भी कहा कि शाही परिवार में दोनों भाई अपनी विरासत बढ़ाने के बजाय राजा की उपाधि के लिए लड़ रहे हैं, जो एक अव्यावहारिक स्थिति है।

प्रयागराज: आगरा के आवागढ़ शाही परिवार में दो बेटों के बीच चल रही वर्चस्व की जंग पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अब देश में राजशाही का दौर समाप्त हो चुका है और लोकतंत्र में यह जरूरी नहीं है कि परिवार के बड़े बेटे को ही राजा का दर्जा मिले।

कोर्ट का आदेश
हाईकोर्ट के जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की सिंगल बेंच ने शाही परिवार के मामले में आदेश दिया कि शाही परिवार के दोनों बेटों के बीच चल रहे विवाद को कानूनी रूप से हल किया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि शाही परिवार में दोनों भाई अपनी विरासत बढ़ाने के बजाय राजा की उपाधि के लिए लड़ रहे हैं, जो एक अव्यावहारिक स्थिति है।

विवाद का कानूनी समाधान
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही परिवार के दोनों बेटों के बीच उपजे विवाद को लेकर एक नया हल निकाला है। कोर्ट ने बताया कि आगरा के राजा बलवंत सिंह कॉलेज और बलवंत एजुकेशनल सोसाइटी में उपाध्यक्ष के 5 साल के कार्यकाल को अब दो हिस्सों में बांट दिया जाएगा। इस निर्णय से दोनों भाई अपनी-अपनी भूमिका निभा सकेंगे, लेकिन राजा की उपाधि का दावा दोनों के लिए अब महत्वहीन हो गया है।

परिवार के बीच तनाव
इस वर्चस्व की जंग में बड़े बेटे जितेंद्र पाल सिंह और छोटे बेटे अनिरुद्ध पाल सिंह के बीच तीव्र विवाद चल रहा था। दोनों भाई अपनी-अपनी विरासत को बढ़ाने के बजाय एक-दूसरे से राजा की उपाधि छीनने की कोशिश कर रहे थे, जिससे परिवार में तनाव और संघर्ष बढ़ गया था।

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