Kanshiram Jayanti: कांशीराम नहीं थे दलित, फिर भी कैसे बने दलित नेता !

Kanshiram Jayanti: बसपा प्रमुख मायावती ने कांशीराम की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके योगदान को याद करते हुए बसपा शासनकाल की उपलब्धियों का बखान किया।

Kanshiram Jayanti: बसपा प्रमुख मायावती ने कांशीराम की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके योगदान को याद करते हुए बसपा शासनकाल की उपलब्धियों का बखान किया। उन्होंने अन्य दलों के दावों को खोखला बताते हुए बहुजन समाज से अपनी ताकत पहचानने और सत्ता हासिल करने का आह्वान किया। कांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 को हुआ था और उन्होंने 14 अप्रैल 1984 को बसपा की स्थापना की थी।

शनिवार को कांशीराम की जयंती पर मायावती ने ‘एक्स’ पर उन्हें श्रद्धांजलि दी और देशभर के बसपा कार्यकर्ताओं का धन्यवाद किया जिन्होंने कांशीराम को याद किया और उनके मिशन को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। मायावती ने कांशीराम के सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति के आंदोलन को मजबूत करने की अपील की।

कांशीराम का जन्म और प्रारंभिक जीवन
कांशीराम जी का जन्म 15 मार्च 1934 को रोपड़ जिले, पंजाब, ब्रिटिश भारत में चमार जाति के रामदासिया परिवार में हुआ था। बचपन और युवावस्था के दौरान उन्हें ज्यादा सामाजिक भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा, क्योंकि वे एक सिख परिवार से थे। कांशीराम ने बाद में फ्रांसीसी राजनीतिक वैज्ञानिक क्रिस्टोफ़ जैफ़रलॉट को दिए एक बयान में इस बात का उल्लेख भी किया था।

मायावती में दिखी दलित नेता की पहचान
कांशीराम की जीवनी लिखने वाले प्रोफेसर बद्रीनारायण बताते हैं कि उनके ऑफिस में फुले के नाम पर एक छुट्टी कैंसिल कर दी गई थी, जिस पर कांशीराम ने विरोध किया। तमाम कोशिशों के बावजूद दलित कर्मचारी एकजुट नहीं हो पाए, तो वह छुट्टी वापस कर दी गई। इस घटना ने कांशीराम को यह समझने में मदद की कि जब तक दलित कर्मचारी एकजुट नहीं होंगे, उनकी बात नहीं सुनी जाएगी। यह घटना 1977 की है, जब मायावती 21 साल की थीं और दिल्ली के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में पढ़ाती थीं। कांशीराम ने दिल्ली के एक कार्यक्रम में मायावती का जोरदार भाषण सुना, जो उन्हें बहुत प्रभावित किया। कांशीराम ने मायावती के पिता से उन्हें राजनीति में भेजने की गुजारिश की, लेकिन जब पिता ने इसे टाल दिया, तो मायावती ने अपना घर छोड़ दिया और पार्टी ऑफिस में रहने लगीं।

कांशीराम को राष्ट्रपति बनने का प्रस्ताव
3 जून 1995 को मायावती यूपी की सबसे युवा और दलित महिला मुख्यमंत्री बनीं। 2001 में कांशीराम ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। कांशीराम पर किताब लिखने वाले एसएस गौतम बताते हैं कि एक बार कांशीराम किसी ढाबे पर बैठे थे, जहां कुछ ऊंची जाति के लोग आपस में बातचीत कर रहे थे। उनकी बातों का मजमून था कि उन्होंने दलितों को सबक सिखाने के लिए जमकर पिटाई की थी। कांशीराम यह सुनकर बहुत गुस्से में आ गए और मामला मारपीट तक पहुंच गया। कांशीराम भलीभांति समझते थे कि राजनीति के जरिए ही दलितों की किस्मत बदल सकती है।

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