श्मशान में भी नाच गाना,यही तो है बनारस! पढ़े पूरी खबर..

काशी के नगर वधूंऔ तक भी जा पहुंचा तब नगर वधूऔ ने डरते डरते अपना यह संदेश राजा मानसिंह तक भिजवाया कि यह मौका अगर उन्हें मिलता हैं तो काशी...

वाराणसी, काशी, बनारस, आनंदवन, के अलावा लगभग दर्जन भर अन्य नामों से अलग अलग मतलंबियों में प्रचलित भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी यह नगरी वास्तव में तमाम जिज्ञासाओं को भी निरंतर जन्म देती रहती है,और इसका कारण है यहां की विविधता यहां की संस्कृति यहां की परंपराएं।

365 दिन तीज त्यौहार और व्रत में डूबे रहने वाले इस शहर के तमाम आयोजन लोगो को सोचने पर मजबूर करते है कि आखिर क्या मिजाज है इस शहर का।

ऐसा ही एक आयोजन होता है यहां,जो महा श्मशान मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच नगर वधुओं के नृत्य में डूबा होता है, इस आयोजन को जो भी देखता है उसे आश्चर्य होता है । होना भी चाहिए ,आखिर श्मशान एक शोक का स्थल है जहां इंसान की अंतिम यात्रा का समापन होता है ,और ऐसे स्थान पर नाच गाना और इतना उल्लास क्यों❓

आइए आप भारत समाचार के डिजिटल पाठकों को बताते है आखिर क्या है मामल।
दरअसल चैत्र नवरात्रि में पंचमी से सप्तमी तक चलने वाले श्री श्री १००८ बाबा महाश्मसान नाथ जी के त्रिदिवशीय श्रृंगार महोत्सव में यह नृत्य नगर वधुओं द्वारा किया जाता है। बाबा महाश्मशान नाथ भगवान शिव के ही स्वरूप है जिनके आराधना का यह एक आयोजन होता है

ऎसी मान्यता है कि बाबा को प्रसन्न करने के लिये शक्ति ने योगिनी रूप धरा था। इस अवसर पर बाबा का प्रांगण रजनी गंधा,गुलाब व अन्य सुगंधित फूलों से सजाया जाता है । आरती के पश्चात नगर वधुएं अपने गायन व नृत्य के माध्यम से परम्परागत भावांजली बाबा को समर्पित करते हुए मन्नत मांगती है की बाबा हमारा अगला जन्म सुधारे, यह बहुत ही भावपूर्ण दृश्य होता है
जिसे देखकर सभी लोगों की आखे डबडबा जाती है।

इस श्रृंगार महोत्सव के प्रारंभ के बारे में विस्तार से बताते हुए गुलशन कपूर ने कहा कि यह परम्परा सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा है। जिसमें यह कहा जाता हैं कि राजा मानसिंह द्वारा जब बाबा के इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था। तब मंदिर में संगीत के लिए कोई भी कलाकार आने को तैयार नहीं हुआ था। ( हिन्दू धर्म में हर पूजन या शुभ कार्य में संगीत जरुर होता है।)

इसी कार्य को पूर्ण करने के लिए जब कोई तैयार नहीं हुआ तो राजा मानसिंह काफी दुःखी हुए, और यह संदेश उस जमाने में धीरे-धीरे पूरे नगर में फैलते हुए काशी के नगर वधूंऔ तक भी जा पहुंचा तब नगर वधूऔ ने डरते डरते अपना यह संदेश राजा मानसिंह तक भिजवाया कि यह मौका अगर उन्हें मिलता हैं तो काशी की सभी नगर वधूएं अपने आराध्य संगीत के जनक नटराज महाश्मसानेश्वर को अपनी भावाजंली प्रस्तुत कर सकती है।

यह संदेश पा कर राजा मानसिंह काफी प्रसन्न हुए और सस्मान नगर वधूऔ को आमंत्रित किया गया और तब से यह परम्परा चल निकली, वही दुसरे तरफ नगर वधूऔ के मन मे यह आया की अगर वह इस परम्परा को निरन्तर बढ़ाती हैं तो उनके इस नरकिय जीवन से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा फिर क्या था आज सैकड़ों वर्ष बितने के बाद भी यह परम्परा जिवित है और बिना बुलाये यह नगर वधूए कहीं भी रहे चैत्र नवरात्रि के सप्तमी को यह काशी के मणिकर्णिका घाट स्वयं आ जाती है।

काशी के इस अलौकिक आयोजन को देखने न सिर्फ स्थानीय लोग बल्कि दूर दराज से भी लोग आते है । संगीत की दुनिया का यह एक ऐसा आयोजन है जो ऐसे स्थान पर लोग देखने चले जाते है ,जहां जाने की इच्छा कोई नहीं रखता, और यही कारण है कि बनारस एक जिंदा शहर कहलाता है ।

रोहित सिंह
भारत समाचार वाराणसी।

Related Articles

Back to top button