
बरेली : आल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने बिहार विधानसभा चुनाव पर एक महत्वपूर्ण बयान जारी किया है। उन्होंने कहा कि बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी के इत्तेहाद की भारी बहुमत से जीत, और कांग्रेस तथा राजद की हार के पीछे एक अहम वजह है, जिसे सियासी लोगों ने अभी तक ठीक से नहीं समझा है।
मौलाना ने कहा कि जब वक्फ संशोधन बिल पास हुआ, तब मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसका विरोध किया था, और इस विरोध का केंद्र पटना बना रहा। इसी दौरान रमजान शरीफ का महीना था, और नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री आवास पर रोजा इफ्तार का कार्यक्रम रखा। इस कार्यक्रम में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के देवबंदी उलमा और दूसरी तरफ सुन्नी सूफी उलमा को दावतनामा भेजे गए। देवबंदी उलमा ने दावतनामा लेने से इंकार कर दिया और रोजा इफ्तार पार्टी का बायकॉट किया, जबकि बरेलवी उलमा ने दावतनामा स्वीकार किया और बड़ी संख्या में भाग लिया।
मौलाना ने कहा कि इससे बिहार के मुसलमानों में दो अलग-अलग गुटों की बंदी हो गई। कुछ समय बाद, बरेलवी उलमा के केंद्र इदार ए शरईया पटना पहुंचे और बिहार की बरेलवी नेतृत्व को सरकार में शामिल करके ओहदे दिए। इसके परिणामस्वरूप, बरेलवी मुसलमानों ने नीतीश कुमार के गठबंधन को वोट दिया, जबकि देवबंदी मुसलमानों ने कांग्रेस गठबंधन को समर्थन दिया। मौलाना के अनुसार, बिहार में 60% बरेलवी मुसलमानों का वोट है, और इस कारण से बरेलवी समुदाय का समर्थन नीतीश कुमार को भारी पड़ा।
मौलाना ने आगामी उत्तर प्रदेश चुनाव (2027) का जिक्र करते हुए कहा कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव कुछ समय पहले बरेली आए थे, लेकिन वह दरगाह आला हजरत पर हाजरी देने नहीं गए, जिससे उत्तर प्रदेश के बरेलवी मुसलमानों को बहुत तकलीफ हुई है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में 60% सुन्नी बरेलवी मुसलमानों की आबादी है, और इस बड़ी आबादी को नजरअंदाज करना अखिलेश यादव के लिए घातक साबित हो सकता है। मौलाना ने यह भी कहा कि अखिलेश यादव जब भी सहारनपुर जाते हैं तो दारूल उलूम देवबंद जरूर जाते हैं, और लखनऊ के नदवा भी जाते हैं, लेकिन वह अब तक कभी भी दरगाह आला हजरत नहीं आए।









