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New Sebi Chief: सरकार का बड़ा फैसला: तुहिन कांत पांडेय को सौंपी SEBI की कमान…

मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार, पांडेय का कार्यकाल उनकी पदभार ग्रहण करने की तारीख से तीन साल या अगले आदेश तक के लिए होगा।

वित्त सचिव तुहिन कांत पांडेय को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) का नया चेयरमैन नियुक्त किया गया है। वह माधवी पुरी बुच का स्थान लेंगे, जिनका कार्यकाल 28 फरवरी को समाप्त हो रहा है। पांडेय 1987 बैच के ओडिशा कैडर के IAS अधिकारी हैं और उन्हें निवेश और विनिवेश से जुड़े महत्वपूर्ण फैसलों के लिए जाना जाता है।

कार्मिक मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार, पांडेय का कार्यकाल उनकी पदभार ग्रहण करने की तारीख से तीन साल या अगले आदेश तक के लिए होगा। उनकी नियुक्ति को केंद्र सरकार की कैबिनेट नियुक्ति समिति (ACC) ने मंजूरी दी है।

एयर इंडिया निजीकरण और LIC IPO में निभाई अहम भूमिका

तुहिन कांत पांडेय को सरकारी विनिवेश योजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है। उन्होंने सार्वजनिक निवेश और संपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM) के सचिव के रूप में कार्य किया है और एयर इंडिया के निजीकरण में अहम योगदान दिया। इसके अलावा, LIC के ऐतिहासिक IPO को सफलतापूर्वक लॉन्च कराने में भी उनका बड़ा हाथ था।

संयुक्त राष्ट्र में भी कर चुके हैं काम

पांडेय ने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रशासनिक अनुभव हासिल किया है। 2001 से 2003 तक, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (UNIDO) में डिप्टी सेक्रेटरी के रूप में अपनी सेवाएं दी थीं। इसके अलावा, उन्होंने ओडिशा सरकार में भी विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है, जिनमें परिवहन विभाग और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग शामिल हैं।

कड़े नियमों और अनुशासन के लिए पहचाने जाते हैं

पंजाब के मूल निवासी तुहिन कांत पांडेय ने अर्थशास्त्र में एमए किया है और बर्मिंघम विश्वविद्यालय से एमबीए की डिग्री प्राप्त की है। उनकी छवि एक सख्त लेकिन न्यायप्रिय अधिकारी की रही है। वे स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते हैं लेकिन अपनी बात को सौम्यता के साथ रखते हैं, जिससे किसी को ठेस न पहुंचे।

SEBI के नए चेयरमैन के सामने बड़ी चुनौतियां

SEBI की जिम्मेदारी संभालते ही पांडेय को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। SEBI कर्मचारियों ने हाल ही में विभिन्न मांगों को लेकर प्रदर्शन किया था, जिसे प्रशासनिक नीतियों के खिलाफ विरोध के रूप में देखा गया। ऐसे में, कर्मचारियों की चिंताओं का समाधान निकालना उनकी प्राथमिकता होगी। इसके अलावा, SEBI की निष्पक्षता को लेकर उठने वाले सवालों का जवाब देते हुए निवेशकों का विश्वास बनाए रखना भी उनकी बड़ी जिम्मेदारी होगी।

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