
PM Modi Gangaikonda Cholapuram: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में तामिलनाडु के गंगाइकोंडा चोलापुरम में चोल वंश की ऐतिहासिक विरासत का सम्मान करते हुए गंगा जल से पूजा अर्चना की, स्मारक सिक्का जारी किया और राजेंद्र चोल I की मूर्ति स्थापना की घोषणा की। इस यात्रा को लेकर राजनीतिक हलकों में खासकर द्रविड़वादी विशिष्टतावादियों (Dravidian exclusivists) के बीच तीखी प्रतिक्रियाएँ देखने को मिलीं।
इतिहास का प्रतीक, राजनीति का बयान
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राजेंद्र चोल की विरासत को आज के भारत के लिए “प्राचीन रोडमैप” के रूप में प्रस्तुत करना—विशेष रूप से नौसेना और प्रशासनिक क्षमता के संदर्भ में कई दक्षिण भारतीय विचारकों को स्वीकार नहीं हो रहा है। उन्होंने इसे उत्तर भारतीय सांस्कृतिक दृष्टिकोण का थोपना बताते हुए इसका विरोध जताया।
गंगा जल की यात्रा
मोदी ने गंगाजल को लाकर चोल मंदिर में अर्पित किया, जिससे राजेंद्र चोल के उस ऐतिहासिक कृत्य को दोहराया गया जिसमें उन्होंने गंगाजल को दक्षिण भारत में मंदिर पूजन में प्रयोग कराया था। यह प्रतीकात्मक कदम इतिहास को वर्तमान राजनीति से जोड़ता प्रतीत हुआ।
द्रविड़वादी ओहदों में प्रतिक्रियाएँ
कई द्रविड़वादी विशिष्टतावादी समूहों का तर्क रहा कि यूपी‑केंद्र सरकार दक्षिण भारत की स्थानीय पहचान और सांस्कृतिक विशेषता को नजरअंदाज़ करते हुए, एक केंद्रीय राष्ट्रवादी कथा पर जोर दे रही है। उनका कहना है कि चोल विरासत को खेल, शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र से जोड़कर एक राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की जा रही है।
सरकार ने क्या कहा?
सरकार का मानना है कि देश की समृद्ध सभ्यता को एक नए समन्वय में प्रस्तुत किया जाना चाहिए, जहां विभिन्न संस्कृतियाँ आपस में जुड़ती और आधुनिक भारत की “एकता में विविधता” की भावना को मजबूत करती दिखाई दें। यह यात्रा संस्कृति आधारित विकास और राष्ट्रीय एकात्मता की दिशा में एक कदम मानी जा रही है।









