प्रधानमंत्री मोदी की डेनमार्क और फिनलैंड से टेलीफोनिक वार्ता, रणनीतिक साझेदारी की ओर एक कदम

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, भारत ने नॉर्डिक देशों के साथ अपने संबंधों को एक नई दिशा दी है। यह साझेदारी साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, नवाचार, स्थिरता और भू-राजनीतिक चिंताओं पर आधारित है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन ने 15 अप्रैल को टेलीफोन पर वार्ता की, जिसमें उन्होंने तीसरे भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन की रूपरेखा तैयार की, जो मई में होने वाला है। अगले दिन, प्रधानमंत्री मोदी ने फिनलैंड के राष्ट्रपति पेटेरी ऑरपो से भी फोन पर चर्चा की। इन वार्ताओं में व्यापार, नवाचार, हरित संक्रमण, जलवायु परिवर्तन, नीली अर्थव्यवस्था, डिजिटलीकरण, स्थिरता और गतिशीलता जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया गया। साथ ही, यूक्रेन संघर्ष और अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा जैसे वैश्विक मुद्दों पर भी विचार-विमर्श किया गया।

ओस्लो यात्रा: भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन की दिशा में एक और कदम

प्रधानमंत्री मोदी 15-16 मई 2025 को ओस्लो, नॉर्वे में आयोजित होने वाले तीसरे भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। यह शिखर सम्मेलन 2018 के बाद से तीसरी बार आयोजित हो रहा है और यह भारत की रणनीतिक प्राथमिकताओं में नॉर्डिक देशों की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।​

इतिहास से वर्तमान तक: भारत-नॉर्डिक संबंधों का विकास

भारत और नॉर्डिक देशों के बीच ऐतिहासिक संबंध रहे हैं, जैसे 1960 के दशक में स्वीडन द्वारा निवेश और नॉर्वे द्वारा भारतीय मत्स्य पालन में सहायता। हालांकि, इन संबंधों में दशकों तक सीमितता रही। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, इन संबंधों को पुनर्जीवित करने और रणनीतिक दृष्टिकोण से ऊंचा उठाने की दिशा में ठोस प्रयास किए गए हैं। 2018 में स्टॉकहोम में आयोजित पहले भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया।​

व्यापार और निवेश: संभावनाओं का विस्तार

भारत और नॉर्डिक देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में पिछले दशक में वृद्धि देखी गई है। 2022-23 के वित्तीय वर्ष में, स्वीडन के साथ व्यापार $2.69 बिलियन, फिनलैंड के साथ $2.02 बिलियन, डेनमार्क के साथ $1.68 बिलियन और नॉर्वे के साथ $1.51 बिलियन रहा। हाल ही में भारत और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) के बीच व्यापार और आर्थिक साझेदारी समझौता (TEPA) पर हस्ताक्षर किए गए हैं, जो नॉर्डिक देशों, विशेष रूप से आइसलैंड और नॉर्वे, के साथ संबंधों को और मजबूत करेगा।​

तकनीकी और रक्षा सहयोग: एक नई दिशा

नॉर्डिक देश नवाचार, स्थिरता और डिजिटल परिवर्तन में वैश्विक नेता हैं। यह भारत की “मेक इन इंडिया”, “डिजिटल इंडिया” और हरित संक्रमण की पहलों के साथ मेल खाता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जैव प्रौद्योगिकी, हरित हाइड्रोजन, इलेक्ट्रिक विमानन और 5G/6G प्रौद्योगिकियों जैसे क्षेत्रों में सहयोग की संभावना है। इसके अतिरिक्त, रक्षा सहयोग भी बढ़ रहा है, जैसे स्वीडन की कंपनी Saab ने हरियाणा में अपने Carl-Gustaf हथियार प्रणाली का निर्माण शुरू किया है।​

चीन और आर्कटिक: रणनीतिक दृष्टिकोण

भारत और नॉर्डिक देशों के बीच सहयोग में दो प्रमुख भू-राजनीतिक कारक हैं: चीन की बढ़ती चुनौती और भारत की आर्कटिक में बढ़ती रुचि। नॉर्डिक देश अब चीन के प्रति सतर्क हैं, विशेष रूप से मानवाधिकार, साइबर सुरक्षा और रूस के साथ संबंधों को लेकर। यह भारत के साथ साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।​

निष्कर्ष: भारत-नॉर्डिक संबंधों की नई दिशा

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, भारत ने नॉर्डिक देशों के साथ अपने संबंधों को एक नई दिशा दी है। यह साझेदारी साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, नवाचार, स्थिरता और भू-राजनीतिक चिंताओं पर आधारित है। ओस्लो में होने वाला आगामी शिखर सम्मेलन इन संबंधों को और मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।

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