रियायती दरों पर चना, मूंग और मसूर जैसी दालें होंगी उपलब्ध,खाद्य कीमतों को स्थिर करने की सरकार की योजना

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने बुधवार को अपने सब्सिडी वाले दाल कार्यक्रम का विस्तार करते हुए ‘भारत’ ब्रांड के तहत चना साबुत और मसूर दाल की शुरुआत की.

दिल्ली- भारत के हर घर में दालों का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जा रहा है. अब इसी से जुड़ी बड़ी जानकारी हम आपको देने जा रहे है.दालों की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए उपभोक्ता मामलों के विभाग ने बुधवार को अपने सब्सिडी वाले दाल कार्यक्रम का विस्तार करते हुए ‘भारत’ ब्रांड के तहत चना साबुत और मसूर दाल की शुरुआत की.

खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री प्रहलाद जोशी द्वारा शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य सहकारी खुदरा नेटवर्क और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के माध्यम से उपभोक्ताओं को रियायती दरों पर चना, मूंग और मसूर जैसी दालें उपलब्ध कराना है. भारत दाल पहल के दूसरे चरण के शुभारंभ के बाद जोशी ने कहा, “हम दालों में मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिए अपने बफर स्टॉक से दालें बेच रहे हैं.सरकार ने खुदरा हस्तक्षेप के माध्यम से वितरण के लिए 0.3 मिलियन टन (एमटी) चना और 68,000 टन मूंग आवंटित किया है.

यह कदम मूल्य स्थिरीकरण कोष से बफर स्टॉक जारी करके खाद्य कीमतों को स्थिर करने की सरकार की योजना के दूसरे चरण के हिस्से के रूप में उठाया गया है.बता दें कि भारत दाल की बिक्री फिर से शुरू होने से मौजूदा त्योहारी सीजन के दौरान उपभोक्ताओं के लिए आपूर्ति बढ़ने की भी उम्मीद है.

मंत्री प्रहलाद जोशी ने कहा कि दाल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नेफेड और एनसीसीएफ जैसी एजेंसियों ने पिछले खरीफ सीजन में किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज वितरित किए थे और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अरहर, उड़द और मूंग जैसी दालों की खरीद सुनिश्चित की गई है.जानकारी के अनुसार,”इस साल खरीफ दालों के बढ़े हुए क्षेत्र कवरेज और आयात के निरंतर प्रवाह के कारण जुलाई, 2024 से अधिकांश दालों की कीमतों में गिरावट का रुख देखने को मिला है.पिछले तीन महीनों के दौरान अरहर दाल, उड़द दाल, मूंग दाल और मसूर दाल की खुदरा कीमतों में या तो गिरावट आई है या वे स्थिर रही हैं.” खरीफ की अच्छी फसल और आयात की संभावनाओं के कारण कीमतों में नरमी आने से दालों की मुद्रास्फीति सितंबर में 9.8% बढ़ी, जबकि अगस्त में यह 113% थी. इसके अलावा दालों की खुदरा मुद्रास्फीति जून, 2023 से दोहरे अंकों में रही है, क्योंकि चना, अरहर और उड़द जैसी दालों की प्रमुख किस्मों का उत्पादन कम हुआ है.

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